ब्रम्हज्ञान
ब्रम्हज्ञान
ब्रह्मज्ञान का आधार सत्यता,
जग रचना का रहस्य है गहरा।
ज्ञान की आंधी से है जगमग सारा,
उजियारे को दे दे मतिश अपारा।
ज्ञान की अग्नि जलती है अनन्त,
इन्द्रियों को तार्किक बंधन से छांट।
बुद्धि के सिंहासन पर विराजे,
विचारों के विस्तार से राजे।
आविर्भाव में निहित है ब्रह्म,
सृष्टि सृजन-संहार से आत्म।
ब्रह्मज्ञान से मिलते मन के रास्ते,
माया के भ्रम से होता विमुक्त हमेश।
विश्व एक पुस्तक की पंक्ति,
ज्ञान मधुर भाषा का प्रयोग।
ज्ञानी की आंखों में ज्योति प्रकट,
अज्ञान अंधकार तिमिर वियोग।
आध्यात्मिक संगठन की उदयी,
ब्रह्मज्ञान से जगत की कांति
हृदय में बसे प्रेम की ज्योति,
सभी को प्रकाशित करता सुख-शांति।
ब्रह्मज्ञान की महिमा अपार,
संसार की दौलत नहीं इसके समान।
ज्ञान अमरता की अमिट संगिनी,
अज्ञान की रेत पर जीवन की बंधनी।
ब्रह्मज्ञान के मार्ग पर चलना,
मोक्ष की प्राप्ति सहज है मिलना।