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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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बरबै छंद

बरबै छंद

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जीवन बहती धारा, चल उस पार ।

ठिठक ठिठक कर बढ़ना, व्यर्थ विचार ।।


जिसके मन का आँगन, है उजियार ।

उसने खुद पर पाया, है अधिकार ।।


आज मिला है तुझको, खेवनहार ।

अब निश्चित होगा भव, सागर पार ।।


ऐ मन चल चलते हैं, मोह विसार ।

भ्रम जीवन माया मृग, देख विचार ।।


जब तक मन तू सोया, चादर तान ।

स्वप्न भयावह तय थे, कहें सुजान ।


जय श्री रघुपति राजा, राम महान ।

सकल सिद्धि के पूरक, जय गुण खान ।


चंचल चपला चमके, ज्यों विकराल ।

त्यों ही नयन निहारें, करें निहाल ।। 



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