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Dinesh paliwal

Others

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Dinesh paliwal

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।। भषण और भाषण ।।

।। भषण और भाषण ।।

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नेताजी कुछ बूझ रहे थे,

मन ही मन कुछ जूझ रहे थे,

हुआ था कुछ तो आज निराला,

या शब्दों का था गड़बड़ झाला,

मन में चुभता कोई बड़ा सुआ था,

आज मात्राओं का खेल हुआ था ।।

देख सुबह का दैनिक ,नेता जी का,

सब तन बदन और मस्तिष्क तपा था,

जो कल दिया था ओजस्वी भाषण,

आज अखबार में वो भषण छपा था ।।

ये टंकण की त्रुटि थी केवल,

या फिर कोई सच बोल रहा था,

रह रह कर नेताजी विचलित,

है कौन जो उन को तोल रहा था ।।

क्या जो अब तक कहते आये ,

वो मात्र भषण ही जनता जानी,

खुद जो वाकपटु मान इतराते ,

क्या वो थी बस उन की नादानी ।।

शब्द लेख का एक एक उनको,

ग्लानि की चिता में झोंक रहा था,

चीख चीख कर नेता जी पर,

मन का कुक्कुर भोंक रहा था ।।

उनके हर एक भाषण पर अब,

ये भषण पड़ रहा था भारी ,

कितने सालों में बस रहा भौंकता,

ये अब जान रही जनता सारी ।।

आज एक मात्रा के छल ने,

है उनको कितना सिखलाया ,

जो बिना तर्क वजन सब बोल गया,

वो भषण आज खुल कर आया ।।

इस भषण और भाषण की रत में,

नेताजी इतना घबराए हैं,

बस बंद किये मुख अब हैं बैठे,

कुछ भी तो ना कह पाये हैं ।।

हो धन्य धन्य ओ मात्रा तुम भी,

जिस ने नेता का सच किया उजागर,

अब नहीं भौंकते हैं वो निसदिन,

अपनी वाणी को भाषण बतलाकर ।।

जीव मनुज की बोली का अंतर ,

है मात्रा तुम ही ने है दिखलाया,

जो हो जनहित वो ही भाषण,

बाकी सब भषण की श्रेणी आया ।।


भषण का अर्थ : भौंकना ।

भाषण का अर्थ : व्याख्यान, संबोधन ।।



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