STORYMIRROR

दयाल शरण

Others

4  

दयाल शरण

Others

बेटी

बेटी

1 min
246

मेरे घर के आंगन में,

निकली कली, 

जो आँचल पकड़,

मां बुलाने लगी है,

मेरे संग खेली,

हंसी खिलखिलाई,

सजन घर चली

तो रुलाने लगी है।।


वो पायल की रुन-झुन,

वो झूले की पींगे

वो गुड़ियों की शादी के

रस्मी सलीके

कोख से सीखके

घर बनाने चली है।


जलेबी को रूसना

जलेबी पे मनना

हमे दर्द हो तो

नयन आर्द्र करना

जो पर्दा हिले

तो लगे आके लिपटी

यूं अहसास को

सम बनाने लगी है।


किताबों के पन्नों में

ये क्या तुम यूं खोई

जो जीवन से जूझी

गृहस्थी में खोई

कभी वक्त पाना

तो देहरी पे आना

मुझे अंक भरना

मुझे प्राण देना

कोई मुझ से पूछे कि

तुम मेरी क्या हो

तो उनसे कहूँगी 

वो तुलसी है खुशबू

लुटाने चली है।


मेरे घर के आंगन में,

निकली कली ...........



Rate this content
Log in