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Husan Ara

Others

2.5  

Husan Ara

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बेटी ना बन पाई

बेटी ना बन पाई

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वो जो महकाती फिरती थी घर आंगन

वो जो चहकी, कूदी, खिलखिलाई

वो बहू क्या बनी, फिर बेटी ना बन पाई


वो हँसी चिल्लाई, तो लज्जाहीन कहलाई

चुप रही, तो सबको घमंडी नज़र आई

काम ना कर पाई, तो कामचोर आलसी

घर पर सब ठीक था, मगर यहां वो थी पराई

वो बहू क्या बनी, फिर बेटी ना बन पाई


अपना पक्ष वो रखे भला क्यों,

ये बात बिल्कुल ना भाई

कोई गलती हुई भला क्यों,

ऐसी बुद्धि कहाँ से लाई

बेटी थी तो पर्दा डाल,

सब करते फिरते रहे बड़ाई

बहू थी तो किया बेनकाब,

हर मसले पर हुई चढ़ाई

वो बहू क्या बनी,

फिर बेटी ना बन पाई


पहले ज़िद करती तो, मनमौजी

बाद में करे तो तेज़ तर्रार भौजी

पहले प्रश्न करे तो समझदार

बाद में करे तो अहंकार

पहले रूठ जाती तो प्यार से जाती थी मनाई

बाद में रूठ जाए तो झगड़े और लड़ाई

वो बहू क्या बनी, फिर बेटी ना बन पाई

कोशिश की, पर रही फिर भी पराई



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