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Akshat Shahi

Others

4.2  

Akshat Shahi

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बेनाम सड़कें

बेनाम सड़कें

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शहर की यह काली सी सड़कें 

काग़ज़ पर लगी लकीरों की तरह 

देखने में उबाऊ नज़र आती है 

पर कई कहानियाँ कहती हैं। 


पर हर कहानी पढ़ी जाए 

ऐसा ज़रूरी तो नहीं होता 

हर कहानी पढ़ने के लिए लिखी जाए 

ऐसा भी ज़रूरी नहीं होता। 


जो कहानियाँ पढ़ने के लिए लिखी जाए 

उनके नाम सोच कर रखे जाते हैं 

बिलकुल वैसे जैसे सड़कों के नाम 

याद रखे जाने के लिए दिए जाते हैं।


मिट्टी में सने हरे बोर्ड पर सफ़ेद नाम 

उपलब्धियों और संघर्ष का सम्मान हैं 

मानव सभ्यता का बदलता इतिहास 

उत्सुक सवालों का अधूरा जवाब। 


उपलब्धियाँ का बड़ा होना ज़रुरी है

जनता की वोटों से संसद पहुँच जाना

सरकारी पैसे से हस्पताल बनाना

मंदिर का लोगों की प्रतिष्ठा पाना।


संघर्ष की कहानी लम्बी होना जरूरी है

रुकी सड़क का टेंडर पास करवाना 

माल में पैसे खा कर भी काम पूरा करवाना 

इमारत पुल बन जाने पर फ़ीता काट आना।


देश हित में कदम उठाना भी जरूरी है

घर बार छोड़ कर सरहदों के पार जाना 

हालातों में फँस कर वापिस घर ना आना

संघर्षों का राजनीतिक खेल बन जाना।


बड़ी कहानियों के साये भी बड़े होते हैं 

जिनमें कई क़िस्से छिप कर जीते हैं 

सुने जाने की चाह रखने वाले ये क़िस्से

किरदारों के नाम खोजते मर जाते हैं। 


इन क़िस्सों से जन्म लेती है समवेदना

यह संघर्ष उपलब्धियों को प्राप्त नहीं होता 

थक कर रुकते नहीं जमाने के साथ चलते हैं 

पर इनकी संवेदनाओं से समाज भी बनता। 


इन क़िस्सों में अतीत के संघर्ष ज़िंदा हैं 

सड़क बनाने वाले उसी सड़क डंडे खाते हैं 

भूखे गरम सड़क पर पैदल ही चले जाते हैं 

मंदिरों के बाहर आज भी भीख माँगते हैं। 


यहाँ कोशिशें हैं ज़िंदा रहने की आशा है 

बंद शहर की सरहदें पार कर घर जाने की 

बीमार बेटी के लिए हस्पताल के बाहर जीने की 

खेत तक लौट कर फिर दो निवाले पाने की। 


इन क़िस्सों का हरे बोर्ड से दूर का वास्ता है 

कहानियों के किरदार क़िस्सों के इर्दगिर्द घूमते हैं 

क़िस्सों के किरदार कहानियों की उपलब्धियाँ हैं 

मरते हैं क़िस्से तो कहानियों के नाम लिखे जाते हैं। 


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