बेचैन निगाहे
बेचैन निगाहे
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बेचैन निगाहें दरवाजे को तकती
आशियाना सुना पड़ा ,निगाहें है थकती
बच्चों के बिना जीवन अधूरा है
पढ़कर कब चले गए ,
करने अपना सपना पूरा है।
बच्चों की फरमाइशो से जब थक जाती थी,
आज वही करने की इच्छा उनकी याद दिला जाती ।
ड़ाटती थी ,जब बच्चे उधम मचायें
काश आज आ जाएं और शोर मचायें
सुना मन ,थका तन ,बच्चों के लिए
मचलती आज निगाहें दरवाजे को है तकती...