बारिश और मन.....
बारिश और मन.....
बारिश से भीगता मन
खामोशियों की परतें हटा
रिमझिम बूंदों की सरगम में
खुद को शामिल कर गुनगुनाना चाह रहा.....
गरजती बरसती अठखेलियां करती
फुहारों को निहारना चाह रहा
फिजा को हसीं कर जाती बारिशें.....
इन नजारों में मन खो जाना चाह रहा
भीगी भीगी मिट्टी की महक और
आंगन में खेलते थिरकते पांव
मन तो बस इन लम्हों को फिर जीना चाह रहा
बूंदों को छू जाती हवाएं.....
मन इन ठंडी बयारों संग मुस्कुराना चाह रहा
बारिश और महबूब तुम्हारा साथ
इन एहसासों से मन मचल रहा
मन.....हां मन सावन की अल्हड़ बौछारें से भीग
कह रहा मुझसे अपने मन की बात.....
मैं भी बारिश का लुफ्त लेती
मन के मनोभावों को पन्नों पे उकेरती
कोशिश कर रही कविता में ढालने की.....