हसरतें......
हसरतें......
हसरतों के दीप जलाए
मन मयूर सा नाच रहा
सावन की बौछारों से
अंग अंग पुलकित हो उठा
हरी भरी मनमोहनी वादियां
फिजाओं को रंगों में डूबो दिया
समां कुछ बहका
बहका सा लगने लगा
बयार भी देखो
आशिकाना होने लगा
उमड़ते घुमड़ते बादल
पलकें बिछाए हैं खड़े
धड़कने जो कभी
गुमसुम सी खामोश सी
मुद्दतों बाद मचलने लगी
शायद "उनकी" आहटें जो आने लगी
कश्मकश से भरा हर्षित मन
बस अपलक उन्हें देखता रहा
उनका आना पतझड़ में
मानो बहार आ गया
वीणा की झंकार मन में
मधुर रस घोल गया
ये निशब्द मन
मौन ही रह गया
आंखों से हौले हौले
हर भाव कह गया
अरसों से धुंधली पड़ी
"हसरतें" आज अश्रु के फूल बन
आंखों से झर झर बहने लगी.....स्वाती।