मुलाकात आईने से......
मुलाकात आईने से......
यूं तो आईने संग रोज वक्त गुजारता
पर फुरसत के दो पल कहां बिताता
कुछ इस तरह मुलाकात हुई आईने से
खुद को तलाशते तलाशते मानो वक्त थम गया
निकल पड़ा था आसमां की चाहत में
आईने में अक्स देख जरा ठिठक गया
तसल्ली से देखा , टटोला खुद को
बेतहाशा भागता मन जैसे ठहरना चाह रहा
उतरकर देखा मुस्कुराहटों की गहराइयों में
हंसता खिलखिलाता मुस्कान
फीका सा लगने लगा
आंखों में नमी झलकने लगा
उम्र गुजरता रहा....
हंसीं , उलझनों को तौलने में
और ख्वाहिशों की लंबी कतारों में
खुद को ही भूलता चला गया
चला जा रहा था अपनी ही मौज में
आसमां में उड़ना बस जुनून था
कहो इसे इंसान की फितरत
खो जाता शख्स शायद
रोशनी की जगमगाहट में
ख्वाहिशों ,ख्वाबों को समेटने में
खुद से ही दूर होता चला गया
भीतर झांका कुछ
आवाज महसूस हुआ
"लौट आ जमीं पे लौट आ"
एक अदद मुलाकात क्या हुई
"आईना " खुद से रूबरू करा गया.....