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सुरभि शर्मा

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सुरभि शर्मा

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बाँसुरी सौतनिया

बाँसुरी सौतनिया

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विरह की रैना बैरी बन तड़पाये 

आ जा रे कान्हा काहे 

मोहे तू सताए।


मोहे से तो लेखा अच्छा 

बांसुरी सौतनिया का 

लगी अधरों से तेरे 

मोहे हर छिन जलाए 

आ जा रे कान्हा 

काहे मोहे तू सताये।

   

मोर मुकुट भी साजे 

शीश इतराए 

आ जा रे कान्हा काहे 

मोहे तू सताए 

भोर भए धेनु राह तके हैं 

 सखा सारे 

यमुना तीरे खड़े आस लगाए 

गोपी की अँगिया 

अब कौन चुराए 

 माखन की मटकी देख तोहे बुलाए 

झूले पड़े हैं सुने सारे 

डार कदंब पे, 

देखी इन्हें नैनन 

भरी भरी जाए 

आ जा रे कान्हा काहे 

मोहे तू सताये।


(सारी शिकायतों का कान्हा का जवाब) 


उलझत सुलझत जग की ये दुविधा 

हम तो खुद को भूली पड़े हैं 

मोह पे राधा तेरे सिवा कौन सहाय 

 तेरे हिया में ही तो जी रहे हैं।


बांसुरी भी है रूठ गयी अब 

राधा राधा यही सुर बजाए 

मोर मुकुट भी शीश ने त्यागा 

तेरे कदमों की ताक लगाए 


नैनन से जब नैनन मिले हैं 

नीर की धारा बह चले है।

दोनों की हालत देख 

रैना पछताए।


(रैना देवी बोलती हैं) 

 

छुपाऊँ कहाँ मुख अपना 

ये कलंक लगाए 

कृष्ण राधा एक साथ) 


रैना काहे तू लजाए 

तू ही तो साखी हमरी 

बंधन की जो है प्रेम सजाए 

राधा कृष्ण अलग कहाँ 

दोनों इक उर समाए 

देखी के जोड़ी इनकी 

देवगन मुस्काए 

नभ धीरे - धीरे 

फूल बरसाये।

हे राधा - कृष्ण

तू तो सबके है 

उर में समाए।

        


               



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