बादल
बादल
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बादल इतना तो बतला दो, फिर फिर क्यों तुम फट जाते हो?
पड़ती है जब बड़ी जरूरत, क्यों नभ से हट जाते हो?
माँगा नहीं कभी भी उतना, जितना तुम बरसाते हो ।
घर आँगन सब टूट गए हैं, कहर बहुत बरपाते हो ।
जीव-जंतु दबकर मरते हैं, दया नहीं दिखाते हो ।
कभी गिरा कर बिजली अपनी, ताँडव बहुत मचाते हो।
हम जैसे तुम बच्चे होते, इतना कैसे रौब दिखाते।
बेंत देखकर माता जी की, डर कर तुम भी छुप जाते॥
