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Vandana Singh

Others

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Vandana Singh

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औरत कहलाती हो।

औरत कहलाती हो।

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ओ! औरत! ये जो तुम नित सवेरे

कमर से साड़ी बांधे, पल्लू ठीक करते

गिरते पड़ते, दौड़ते भागते

कई कामों को अधूरा किए

कई लोगों को रूठा छोड़े

आधी नींद

आधे जगे

बाल कुछ बने, कुछ बिगड़े

पर होंठों पर मुस्कान लिए

काम पर जाती हो ....

कुछ आंखों में सपने लिए

कुछ मन में धुकधुकी लिए

अपने सोए बच्चे को पल भर भी बिना निहारे

खाने के डब्बे कुछ भरे, कुछ मेज़ पर छूटे

आईने में पल भर भी अपना रूप बिना सराहे

ये जो तुम नित सवेरे तड़के उठकर भाग भाग कर

काम पर जाती हो

कैसे कर लेती हो ये सब?

और क्या पाती हो?


करुणा, वेदना, अवहेलना

सब कुछ सह जाती हो

सुबह शाम जब भी मिलती

बड़े प्यार से मुस्कुराती हो

कोई ग्लानि कोई शिकायतें नहीं पालती

दूसरे ही क्षण सब भूल जाती हो

ओ औरत! ये जो बड़ी आसानी से सब कर जाती हो

इसलिए ही यकीनन तुम औरत कहलाती हो

शक्ति के इस महा पर्व में

मां! तुम ही हर नारी के अवतार में आती हो

शक्ति की परिचायक नारी 

अम्बा, गौरी, विघ्ननाशनी कहलाती हो।


विश्व की हर नारी को सप्रेम समर्पित 



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