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Sudershan kumar sharma

Inspirational

4  

Sudershan kumar sharma

Inspirational

अनूठी  चाहत

अनूठी  चाहत

2 mins
327



चाहे लाख हो मुसीबत पर वो सुनाया नहीं करती, 

खुद सह लेती है हर दुःख दर्द

पर वो मां ही है जो बिन बजह रूलाया नहीं करती। 


दौलत चाहे कितनी भी हो तुम्हारे पास पर उसकी दौलत तुम ही हो, 

यही चाहती है तुम हीबढ़ो फूलो, 

तुम से कुछ चाह नहीं रखती

वो मां ही है जो बच्चों को फरमाया नहीं करती। 

 बदल जाते हैं दोस्त बदल जाते हैं रिश्तेदार, 

लेकिन वो मां ही है जो कभी बदला नहीं करती, लाख रूठो तुम उससे

मगर वो रूठा नहीं करती। 

तुम बढ़ते हो तो जलते हैं लोग, वो मां ही है जो कभी शिकवा नहीं करती, 

अपनी खुशी में तुम भूल जाओ चाहे उसे

लेकिन वो मां ही है जो बच्चों को कभी भुला नहीं सकती। 

व्यस्त हो या मस्त हो तुम 

तो भी खुश रहती है, 

अन्दर ही अन्दर झंझोड़ती है

अपने आप को पर कुछ नहीं आप को कहती है, 

सह लेती है अकेलापन पर

बच्चों की रक्षा चाहती है

वो मां ही है जो सब कुछ सह जाती है। 

नहीं समझ पाया मां का मर्म

सुदर्शन जब देखा बारिश में

बन्दरिया ने बच्चे को गले लगाया,

कूद रही थी इधर उधर मिल जाये पेड़ की घनी छाया, 

मुर्गी ने भी था जाल पंखों का 

बच्चों पर फैलाया, फिरती है 

कंगारू की मां देकर बच्चे को झौली का छाया

क्या यही मां की ममता कहती है, हर लेती है हर संकट पर बच्चों को नहीं कहती है। 

 आओ मिल के कसम हम खांए, मां का हर फर्ज हम निभांए,

सौ ती्र्थों का तीर्थ हम पांए, वोही हमारी मथुरा वोही काशी है,

सदा सुखी रहेंगे हम यही मां चाहती है

सह लेती है सब दुःख दर्द

लेकिन कुछ न हमको कहती है, 

वो मां ही है जो कुछ सुनाया नहीं करती

सह लेती है हर दर्द लेकिन बच्चों को रूलाया नहीं करती। 


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