ऐसा मैंने कब कहा?
ऐसा मैंने कब कहा?
चोर हैं ये सारे सियासतदान, ऐसा मैंने कब कहा,
मुल्क को, बना रहे श्मशान, ऐसा मैंने कब कहा!
बना रहे, मुल्क को पायदान, ऐसा मैंने कब कहा,
मुल्क में बचे, थोड़े से इंसान, ऐसा मैंने कब कहा!
गर बेटी का पता लग जाए, कोख मिटाई जाती हैं,
ज़रा-ज़रा सी बात पे यहाँ, बेटियाँ जलाईं जाती हैं!
मरने पे तो जलता ही है इंसान, हमारे मुल्क में तो,
कि ज़िंदा भी जलाओ इंसान, ऐसा मैंने कब कहा?
लाखों कमाने वालों को चंद हज़ारों में बिकते देखा,
ऐसे लोगों को सियासती गोदों में मैंने टिकते देखा!
ईमान वालों को देखा, दर-ब-दर, भटकते हुए मैंने,
कि ज़रा बन जाओ बे-ईमान, ऐसा मैंने कब कहा?
जीभ जो ख़ुद रह गंदी तलवों को साफ़ किया करें,
साहब भी ऐसे लोगों को जल्दी से माफ़ किया करें!
जब दौड़ाया गया गधों को घोड़ों की दौड़ में, तभी,
ये मुल्क मेरा बन गया महान, ऐसा मैंने कब कहा?
बहुत सी मज़बूत रस्सियों के सहारे टिका है मुल्क,
उमंग-विश्वास से तुम्हारे और हमारे टिका है मुल्क!
बहुधा लोग देखे मैंने जो काट रहे हैं, रस्से मज़बूत,
बचा लो देश का अभिमान कि ऐसा मैंने अब कहा!