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ऐ मेरे मन

ऐ मेरे मन

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ऐ मेरे मन कैसा है तू

बेफ़िजूल की बातें ना कर

अलापता है राग घर बाहर में

यहां वहां टांग अडाकर।।


ऐ मन तुम को डर किस बात का

आता जाता देख करे तू अंदर बाहर

कभी इस डाल पर कभी उस डाल पर

मक्खियों की तरह भिन भिनाता है छोर पर।।


भरे बाजार में करता राज

जात पात का रंग दिखा कर

अपनी बहन बेटी को रखता है

पर्दों के अंदर सहेजकर।।


पानी तेरा रंग कैसा मिल बांट खाने का

बीन पेंदे लोटा जाये लुढ़क कर

सफेद बगूला शिकार करे चुपचाप

खूब भरता है चोंच लूट लूटाकर।।


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