ऐ जिंदगी
ऐ जिंदगी
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ऐ जिंदगी दीये की लौ न बन
तुझे समंदर सा बनना है
जितने भी है दर्द
उसे अपने अंदर की सहना है
तुम्हारे पीर का हिसाब
कभी न कभी वह भी देंगे
क्योंकि नदी बन उन्हें भी
किसी समंदर में ही मिलना है ! !