Mayank Kumar
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ऐ जिंदगी दीये की लौ न बन
तुझे समंदर सा बनना है
जितने भी है दर्द
उसे अपने अंदर की सहना है
तुम्हारे पीर का हिसाब
कभी न कभी वह भी देंगे
क्योंकि नदी बन उन्हें भी
किसी समंदर में ही मिलना है ! !
तुम एक कलम सी...
उस चाँद का भी...
कुछ खिला चंदा...
पहरेदार
आधी रोटी
मैं भीग रहा ह...
तू कहीं खो गय...
कुछ बातों को ...
मैं तेरे लिए ...
मेरे अंदर वह ...