अधूरी तसल्ली
अधूरी तसल्ली
1 min
363
तुझे आज मैंने तस्वीरों में उतारा है
आँखें मूंद चंद यादों को निहारा है।।
उन यादों से चुन कर सारे खूबियाँ
बड़े शिद्दत से तुझे हूबहू उकेरा है।।
खामोश निगाहों को लिखते लिखते
पिघलते अहसासों ने खूब पुकारा है।।
दूर तक फैली हुई नज़रों की लफ्ज़ को
महसूस की ख़ुश्क आवाजों में पुकारा है।।
ताकती थी जो आँखें आसमां को ऐसे
जैसे समेटे हो कोई मायूसी की पिटारा है।
फिर भी बहुत कुछ अनछुए रह गए
नाकाम कोशिशें ने हर बार दुत्कारा है।।
अधूरी ही सही मेरी तसल्ली हो तुम
सुकून है के तुझे तस्वीरों में उतारा है।।
