आस्था के साथ- साथ कर्म भी होना
आस्था के साथ- साथ कर्म भी होना
शंख भी बजाओ तुम दीप भी जलाओ तुम
मगर बिना कोई कर्म किये तुम उनसे आस भी मत लगाओ,
वो देते है मगर कर्म के साथ देते है बिना,
कर्म किये तो फिर वो भी कहाँ साथ देते है!!
बेशक मंदिर जाओ तुम मंत्र का उच्चारण भी सही सही करते जाओ तुम,
मगर दूसरी तरफ़ अपना कर्म भी करते जाओ तुम,
मैं नहीं कहती तुम खुद देख लेना बैठे बैठाये फल की इच्छा कर के तुम देख लेना!!
शंख भी बजाओ तुम दीप भी जलाओ तुम
कोई भी भगवान हो आस्था किसी पे भी रख के देख लेना
मगर तुम्हारी कोशिशें अगर नहीं होगी तो,
दोष फिर उनको मत देना,
फूल भी बरसाओ तुम व्रत भी रखते जाओ तुम,
उनसे जितनी उम्मीदें लगाओ, उससे ज्यादा उम्मीदों,
से तुम अपने प्रयास भी करते जाओ तुम!!
शंख भी बजाओ तुम दीप भी जलाओ तुम
उसमें भरोसा है मगर खुद पे भी भरोसा करते जाओ तुम,
एक तरफा भरोसा कहाँ मंजिल तक पहुंचाता है
ये तो बस सवालात की एक नई दुनिया खड़ी करता जाता है!!
शंख भी बजाओ तुम दीप…........
