आईना..
आईना..
दोस्तों ने मिरे मुझको तोहफ़े में इक आईना भिजवाया है।
बोलता कुछ भी नहीं मग़र गहराइयों से मुझे खॅंगालता है।।
हकीक़त करता है बयाँ सब की नायाब सा वो तोहफ़ा है।
इंसानों से हैं बेहतर इसीलिए फ़रेब ना कोई धोख़ा रखता है।।
उदासी के क्षणों में बनकर हमदम वो साथ हरदम रहता है।
संग रोता हैं दर्द में और साथ ही पल में हंसाने लगता हैं।।
चेहरे पे हो फ़रेब या दिल में कपट कोई झट वो पकड़ लेता है।
हमारी अच्छाईयों और बुराईयों को पल में निर्वस्त्र कर ये देता है।।
पड़ती है जब भी नज़र उसकी मुझे पे वो जी भर के हँसता है।
झूठला कर हंसी मेरी,वार वो अपनी चुभन से मुझ पे करता है।।