आदत से मजबूर
आदत से मजबूर
आत्मग्लानि भरा यह दिल ,तुमसे कुछ कहना चाहता है ।
आदत से हूँ बड़ा मजबूर, फिर भी इससे बचना चाहता हूँ।।
मजे की बात तो देखो, लोग दूसरों की इज्जत उतारा करते हैं ।
अपने घर की इज्जत तो छोड़ो, अपने गिरेबान में न झाँँका करते हैं।।
ईर्ष्या, द्वेष में फँसा प्राणी, दूसरों को उपदेश दिया करते हैं।
घर के क्लेश में पड़ा प्राणी, समाज को सुधारा करते हैं ।।
इस दलदल में फँसा हुआ है ,कभी बाहर न निकलना चाहता है।
मान -बड़ाई के खातिर वह, किसी भी हद से गिरना चाहता है ।।
समाज से जुड़ा यह मानव, अपने घर की व्यथा न सुधार पाता है।
मौका पड़ते ही वह अपने को, दूध का धुला समझता है।।