आदर्श ,सिद्धान्त और कविता
आदर्श ,सिद्धान्त और कविता
'मेरे लिखने से क्या होगा?
कुछ बदल तो नही जाएगा न?'
मैं माँ से अक्सर ये सवाल करती थी
मेरी इन बातों से माँ अक्सर कहती थी
'कलम तुम्हारी ताक़त है....
कलम तुम्हारा हथियार है....
इससे तुम दुनिया बदल सकती हो...'
माँ की बातों से मैं फिर लिखने लग जाती
मेरी लिखी कहानियों के किरदार सवाल करते थे
कभी समाज से.....
कभी सिस्टम से....
कभी भगवान से....
और वह किरदार कहानी के अंत में
खामोशी अख्तियार कर लेते थे.....
लेकिन मुझे उनकी वह खामोशी
कहीं गहरे अंदर तक कचोटती थी
मैं फिर दूसरी कहानी लिखना
शुरू कर देती थी
और उसमें उन किरदारों को
इन्कलाबी बातें करते हुए दिखाती
लेकिन यह क्या?
मेरी वह कहानी पाठकों को
रास ही नही आती थी...
वह मुझे लिखते रहते....
आपकी पहली वाली कहानी
ज्यादा अच्छी थी.....
जिसमे वह लड़की अपने कैरियर से
ज्यादा परिवार को तरजीह देती थी
मैं फिर से वर्किंग वुमन की घर परिवार की जद्दोजहद को छोड़कर
घरेलू औरतों की कहानियाँ लिखने लगती
माँ मुझे कहती ही रह जाती....
अपनी मन की सुनो.....
और वैसे ही कहानी और
कविताएँ लिखा करो...
माँ दुनियादारी से ज्यादा आदर्शों की परवाह करती है
और मुझसे भी वही उम्मीद करती है
लेकिन माँ की बातों को अनसुना कर
मैं लोगों की नब्ज़ के हिसाब से
कहानी और कविता लिखती जाती
क्योंकि दुनियादारी भी तो
कोई चीज़ होती है....
जिंदगी जीने के लिए
रुपयों की जरूरत होती है...
आदर्शों और सिद्धांतों से
जिंदगी क्या ख़ाक चलती है?