मीठी यादों के सहारे
मीठी यादों के सहारे
"देखती नहीं क्या ? कितना काम है अभी मेरा ! खाना-खा, खाना खा ! जा, खा ले ना तू। हर वक्त बक-बक !"-अविनाश ने झल्लाते हुए नेहा से कहा।
नेहा के आंखों से आँसू छलक पड़े। उसने तो यही सोचकर उनसे खाने के लिए कहा कि आँफिस से थक कर आये होंगे। भूख लगी होगी। बस इतनी-सी बात पर भी डांट-फटकार। वह दौड़ती हुई छत पर जा पहुंची। उसे अतीत याद आने लगा। तीन साल पहले ही तो उन दोनों की शादी हुई थी। अपनी मर्ज़ी से घरवालों को मना कर दोनों ने प्रेम विवाह किया था।
शादी के दो साल बाद ही अविनाश इतने बदल जायेंगे। नेहा ने सपने में भी नहीं सोचा था। क्या ये वही अविनाश हैं, जो शादी से पहले मुझसे कहा करते थे- "मैं सारे कष्ट सह लूँगा, लेकिन तुम्हारे आंखों में कभी आँसू नहीं आने दूँगा।" पता नहीं अब वह कभी पुरानी जिंदगी को दोबारा जी भी पायेगी या फिर उसे अतीत की मीठी यादों के सहारे ही जीना होगा ?
वह इसी उधेड़बुन में थी कि नीचे से आवाज़ आई- "नेहा, ओ नेहा ! कहाँ चली गई ! खाना लगा दो भूख लगी है..।" वह तेजी से छत की सीढ़ियों से नीचे उतर गई।