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Satyawati Maurya

Others

5.0  

Satyawati Maurya

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जेब वाली शर्ट

जेब वाली शर्ट

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कल शाम मैं, पति, बहू और 3 वर्षीय पोते के साथ उसके ही जन्मदिन की शॉपिंग के लिए रिक्शे से शहर जा रहे थे। पोते को नींद से उठा कर लाये थे, सो बहू उसे खिला -पिला भी रही थी। बीच -बीच में हम क्या ख़रीदना है, इसकी भी चर्चा कर रहे थे। शाम हो चुकी थी तो जल्दी ही वापस भी आना था, सो रिक्शे वाले को तेज़ चलाने को कह रहे थे। बेचारा पूरी कोशिश में लगा हुआ था, पर उसके रिक्शे में स्पीड की ही भारी समस्या थी। हमारे  रिक्शे के अगल -बगल से सरसराते दूसरे रिक्शे, कार और अन्य गाड़ियाँ चले जा रहे थे, और हमारा रिक्शा अपनी स्पीड में एक संतोषी जीव की तरह, सबको आगे जाने को जैसे प्रोत्साहित कर रहा था। हमें खीज भी हो रही थी। पर अब किया क्या जाए। तभी उस रिक्शे की सुस्त-सी चाल में भी ब्रेक लग गया, तो देखा सामने लाल सिग्नल दहक रहा था।

अब तो संयम की जैसे पराकाष्ठा ही हो गई, ख़ासकर मेरी। क्या करते तो नज़रें इधर -उधर घूमा कर बाहर का जायज़ा लिया। तभी रोड के डिवाइडर पर सिग्नल के करीब, जहाँ थोड़ी ज्यादा चौड़ी जगह थी, नज़र गई। देखा 2 ग़रीब परिवार वहाँ अपने बच्चों सहित बैठा था। शायद भीख माँग रहे थे वहाँ। अमूमन सिग्नल पर यह दृश्य दिख ही जाता है। वह परिवार वहाँ बैठ कर शायद इस समय आराम फ़रमा रहा था।

एक परिवार की लगभग 6-7 महीने की बच्ची वहीं ज़मीन पर बैठी अपनी अदाओं से, बालसुलभ हरकतों से, माता -पिता को निहाल किये जा रही थी। पास ही एक अन्य परिवार के माता -पिता कपड़े की 2 गठरियों, प्लास्टिक के झोलों के साथ बैठे थे। उनके 3 नौनिहाल जो एक -दूसरे से शायद साल भर के ही अंतर के थे, खड़े थे। माँ उनमें से एक जो 5-6 साल का होगा, उस बेटे को सफ़ेद छींटदार शर्ट पहनाकर , बटन लगा रही थी। उस बच्चे ने फुलपैंट भी पहनी हुई थी। ख़ुशी के साथ एक मुस्कुराहट थी उसके होंठों पर। तभी देखा कि उसका भाई जो 3-4 साल का रहा होगा ,ने पहनी हुई टीशर्ट निकाल कर ज़मीन पर फेंक दी। वो साहब कुछ क्रोध में थे और नीचे से नंगे भी थे। माँ ने हल्के हरे रंग की चेक्स शर्ट प्लास्टिक झोले से निकाल कर उसे पहनाने की कोशिश की तो बच्चे ने उसे माँ के हाथ से खींच कर ज़मीन पर पटक दिया। वह नाराज़ हुआ जा रहा था अपनी माँ से। वहीं 2-3 साल का तीसरा नौनिहाल बड़ी उत्सुकता और निर्लिप्तता से अपने भाई की हरकतों को मुँह से टीशर्ट का कोना चबाते देख रहा था।

 उधर बड़े वाले ने जो पूरे कपड़ों में था, ने बड़े ठसक से शर्ट और पेंट की ज़ेब में बारी -बारी हाथ डाला। यह देख कर बीच वाला और नाराज़ हो उठा। शायद उसे भी ज़ेब वाली शर्ट की चाह थी! माँ ने फिर झोले में हाथ डाल कर दो -तीन कपड़े और निकाले, पर जिसमें पॉकेट थी, वही नीली शर्ट उन नँग-धड़ंग महाशय को पहनाई। अब उनके चेहरे की रौनक कुछ और थी, मुँह में उँगली डाले मुस्काने लगा, उधर बेटे की ख़ुशी पर फ़िदा होते माता- पिता भी मुस्काने लगे। हाँ, शर्ट के बीच का एक बटन ग़ायब था, पर ज़ेब ज़रूर थी। पैंट तो नहीं ही पहनी थी अब भी। पर ज़ेब वाली शर्ट से उसके चेहरे पर जो सन्तोष और ख़ुशी झलक रही थी वह बयां नहीं हो सकती।


   

    


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