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पित्रूश्का

पित्रूश्का

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एक जमींदार था। उसके पास बहुत बड़ी जागीर, और दौलत तो इतनी जिसकी कोई गिनती ही नहीं थी। मगर अपनी कीमती चीज़ों में से सबसे ज़्यादा प्यार उसे अपने शिकारी कुत्ते से था। ये कुत्ता बड़ा चालाक था – बिल्कुल किसी आदमी जैसा। जमींदार उसे जो भी हुक्म देता –वह पूरा करता। जमींदार ने उसका नाम भी यूँ ही कुछ नहीं रखा था , बल्कि उसे दिया था इन्सान का नाम : पित्रूश्का।

ये बताना ज़रूरी है, कि ये जमींदार बड़ा दुष्ट- अति दुष्ट था। उसके यहाँ कोई भी मज़दूर एक हफ़्ते से ज़्यादा नहीं टिकता था।

नतीजा ये हुआ कि जमींदार एकदम बिना सेवकों के रह गया : सब भाग गए। उसने ख़ुद ही काम करने की कोशिश की। मगर कहाँ से : उसे तो कुछ करना आता ही नहीं था, आलसी भी बहुत था। ज़ाहिर है, किये-कराये पर जीने की आदत जो पड़ गई थी। तब जमींदार ने घोड़ा जोता और मज़दूरों की तलाश में निकल पड़ा। चलता रहा - चलता रहा, मगर कोई भी उसके पास आने को तैयार न था : सब जानते थे, कि ये जमींदार बहुत दुष्ट है!

जमींदार गुस्से से भरा घर लौट रहा था। देखता क्या है – सामने से एक छोकरा आ रहा है और गाना गा रहा है। मगर था तो चीथड़ों में और नंगे पाँव।

“अच्छ”, जमींदार ने सोच, “पूछता हूँ, हो सकता है, कम से कम, ये फ़टेहाल छोकरा मेरे पास काम करने के लिए आ जाए। "

उसने घोड़े को रोका।

"ऐ, नंगे पैर छोकरे,” चिल्लाया, “मेरे पास काम करने आयेगा?” छोकरा रुक गया।

“क्यों नहीं करूँगा”, छोकरा बोला, “अगर अच्छा जमींदार मिल जाए तो। चल, रख ले मुझे। ”

जमींदार मुस्कुराया और सोचने लगा : “ओ, लगता है, ये आ जायेगा, क्योंकि मुझे अच्छा आदमी समझ रहा है।"

“ठीक है, तो गाड़ी में बैठ जा,” उसने कहा। यान्का (उस छोकरे का यही नाम था) जमींदार की गाड़ी में बैठ गया और वे जागीर की ओर चले।

घर पहुँचने पर, जमींदार ने यान्का से कहा :

“दूसरा घोड़ा जोत, जंगल में जा और लकड़ियाँ ले आ।" यान्का सकुचाया।

“हुज़ूर ,पहले खाना खा लूँ। मुझे, देख रहे हैं न, कि सफ़र से भूख लग आई है। ”

“मैंने तुझे काम करने के लिए रखा है, या खाने के लिए?” जमींदार चीख़ा। “कैसा चालाक है!” यान्का ने सिर खुजाया और बोला:

“अरे, मुझे क्या पता कि जमींदार का जंगल कहाँ है और वहाँ पर कौन-से पेड़ काटना हैं। ”

“अच्छा,” जमींदार ने जवाब दिया, “मैं काम में फँसा हूँ, और तुझे समझा नहीं सकता। ये काम मेरा कुत्ता पित्रूश्का कर देगा। मैं उसे बुलाता हूँ, और वो तुझे, जहाँ चाहे, ले जाएगा। "

यान्का ने घोड़ा जोता और कुत्ते के पीछे-पीछे चल पड़ा।

कुत्ता ख़ुश, कि उसे आज़ादी मिली थी, और वह जहाँ मन चाहा उछलते हुए, कूदते हुए भागा। और यान्का था उसके पीछे-पीछे।

कुत्ता पानी के डबरे में – तो मज़दूर भी गाड़ी में उसके पीछे-पीछे, कुत्ता झाड़ियों में – और यान्का भी वहीं जाता।

इस तरह वे जंगल में पहुँच गए।

यान्का ने सिर्फ एक ही पेड़ काटा , कि कुत्ता मुड़कर घर की ओर भागा। यान्का भी पना काम छोड़कर गाड़ी में बैठ गया और कुत्ते के पीछे चला। जहाँ कुत्ता – वहीं यान्का।

जमींदार ने देखा कि मज़दूर बिना लकड़ियों के लौटा है। वह उस पर झपटा और लगा मारने। मारता रहा-मारता रहा, मार-मार कर अधमरा कर दिया।

सबेरे जमींदार ने यान्का को उठाया और हुक्म दिया :

“चल उठ, आलसी, एक भेड़ काट दे : आज मेरे यहाँ मेहमान आ रहे हैं। ”

“कौन-सी भेड़ को काटूँ, मालिक?” यान्का ने पूछा।

जमींदार ने हाथ हिलाया:

“तुझे बताने का मुझे कोई शौक नहीं है। पित्रूश्का को आवाज़ दे – वो जिसके पास भागे, उसी को काट दे। ”

यान्का ने एक बड़ा चाकू उठाया, कुत्ते को पुकारा और मवेशी खाने चला। जमींदार का मवेशी खाना बहुत बड़ा था – उसमें बहुत सारी भेड़ें थीं। कुत्ता मवेशी खाने में भागने लगा : कभी एक भेड़ के पास, तो कभी दूसरी के पास। और यान्का उसके पीछे – उस भेड़ का गला पकड़ता, जिसके पास पित्रूश्का भागता, और उसके गले पर चाकू का वार कर देता। इस तरह से उसने सभी भेड़ों को काट दिया।

जमींदार ये देखने के लिए आया, कि यान्का ने मेहमानों के लिए अच्छी भेड़ काटी है या नहीं। जैसे ही उसने मवेशी खाना देखा, अपना सिर पकड़ लिया : उसकी सारी भेड़ें कट चुकी थीं । जमींदार फिर से यान्का को मारने लगा। मारता रहा – मारता, मार-मार कर अधमरा कर दिया।

यान्का मुश्किल से होश में आया ही था, कि जमींदार ने उससे कहा:

“बेवकूफ़, अब भेड़ों को पका! देख,बहुत लजीज़ होना चाहिए : काली मिर्च छिड़क और पित्रूश्का (पित्रूश्का का मतलब होता है – कोथमीर – अनु। ) से सजा दे।

यान्का सोचता रहा-सोचता रहा, ये पित्रूश्का क्या बला है, और फिर उसे याद आया कि ये तो जमींदार के कुत्ते का नाम है! उसने कुत्ते को काट दिया, उसकी खाल निकाल दी, और माँस को बारीक-बारीक काट लिया और – हाँडी में डाल दिया, जैसा जमींदार ने कहा था।

जमींदार के यहाँ मेहमान आये। यान्का उन्हें भेड़ का पकवान खिलाने लगा। जमींदार कुत्ते का माँस खाने लगे, आह, कानों में झनझनाहट होने लगी। इतना ज़्यादा खा लिया कि साँस लेने की भी ताकत न रही।

“और अब, प्यारे मेहमानों,” जमींदार ने कहा, मैं आपको अपना होशियार कुत्ता दिखाऊँगा। ऐ, यान्का, पित्रूश्का को बुला। ”

“कौन से पित्रूश्का को, मालिक?” यान्का ने अचरज से पूछा। “आपने तो उसे पीस कर भेड़ का पकवान सजाने को कहा था। ”

इतना सुनते ही जमींदार गुस्से से हरा हो गया। और उसके सामने ऐसा धुँधलापन छा गया, कि सारी आँतें बाहर निकलने को हो गईं। और, जमींदार की रूह बाहर निकल गई।



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