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प्यार ही प्यार

प्यार ही प्यार

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जब हम काशीपुर में थे। हमारे एक पड़ोसी महाशय श्री अमित जी हमारे साथ ही ऑफ़िस में काम करते थे। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती आशा जी की हमारी पत्नी से प्रगाढ़ दोस्ती हो गयी। श्रीमती आशा जी स्वभाव् से कुछ भुलक्कड़ थी या फिर जान पूछ कर ऐसा व्यवहार करती थी जिससे उनके घर का फायदा हो।

हम ऑफिस में ज्यादातर लोग एक साथ ही एक ही टेबल पर लंच करते थे और एक दूसरे के टिफ़िन में से भी डिश शेयर कर लेते थे। अमित जी के टिफ़िन में अक्सर रोटी परांठे व् बनी हुई दाल सब्जी की जगह अलग अलग चीजें निकलती थी। जो आशा जी भूल वश बने खाने की जगह टिफ़िन में पैक कर देती थी। हफ्ते में तीन चार बार ऐसी स्थिति में अमित जी अपना टिफ़िन वापस पैक करके हम लोगो के टिफ़िन में से शेयर करते थे।


एक दिन तो हद ही हो गई, अमित जी के टिफ़िन से गुंदा हुआ आटा और ६ कच्चे परवल निकले। अमित जी ने घर फ़ोन लगाया और आशा जी निवेदन किया कि नौकर से रिक्शा में गैस चुलाह व् सिलिंडर ऑफ़िस भिजवा दें। आशा जी ने पूछा की क्या बात है ? अमित जी ने बताया कि रोटियाँ व् सब्जी बनानी हैं। खाने के बाद हम लोग अपनी अपनी सीट पर काम करने लगे।

करीब आधे घंटे बाद अमित जी का घरेलू नौकर पूरन गैस चुलाह व् सिलिंडर लेकर ऑफ़िस आ गया। उसे व् उसके साथ सामान देख कर अमित जी आवाक व् विस्मित और सारा स्टाफ हँसी में लोट पोट। तो ऐसी हैं हमारी श्रीमती आशा जी। 


ऐसा लगता है कि पण्डित जी ने शादी में एक दो फेरे कम लगवाये थे, तभी तो आशा जी से ऐसी भूल भटक हो जाती है, लेकिन अमित जी और आशा जी की अनगिनित कहानियों में सिर्फ प्यार ही प्यार छलकता है। काश ऐसा प्यार सब को नसीब हो ! जय हो।



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