शिक्षा व्यवस्था
शिक्षा व्यवस्था
सुबह सुबह का समय था तीन दोस्त चाय की दुकान पर बैठते हुए। अरे मुरारी तीन चाय बनाना अदरक इलायची वाली। और हाँ ज़रा कड़क बनाना।
हाँ चौधरी साब अभी लाया।
तभी दो तीन बच्चे पास से गुज़रे...जिनके कन्धों पर भारी भरकम बस्तों का बोझ था, उन्हे देख के गोपी चंद जी के मुख से अनायास ही निकल गया...आज कल की शिक्षा का क्या कहना। जितना वजन बच्चे का नहीं होता उससे कही ज्यादा तो कॉपी किताबों का होता है। और महँगाई की तो पूछो ही मत सारे घर का खर्च एक तरफ, और पढ़ाई का एक तरफ। और तो और वर्दी की तो बात ही ग़जब है। सप्ताह में तीन तीन भांत की लगती है। जूते और रह गए। क्यों भाई चौधरी साब। ठीक कह रहा हूँ न। और उनकी टिका- टिपण्णी शुरु हो गई शिक्षा पर।
चौधरी साब....हाँ भाई..या बात तो तू ठीक बोले है। तेरे को एक बात बताऊँ... पिछले महीने जब बच्चों का दाख़िला करवाया था तब लाखों का ख़र्चा हो गया था, कहीं वर्दी का तो कहीं किताब कॉपी पर। तो कहीं पर डोनेशन दो। हद हो गई भाई..
तभी बीच मे राधा किसन जी बोले.... हाँ भाई यही हाल हमारे घर का भी है, इन सब ख़र्चों के साथ ये अलग से ट्यूशन और रखो। पता नहीं भाई ये मास्टर लोग ठीक से पढ़ावे भी है कि नहीं। ये लोग ये नहीं सोचते ज़रा सा भी कि अमीर आदमी तो चल पढ़ा लेगा, पर यो ग़रीब कैसे पढ़ाएगा। जिसके हिस्से में दो जुन की रोटी ही मुश्किल से आवे है। वो पढ़ाई का खर्च कहाँ से उठाएगा...
सरकारी स्कुल का तो हाल सब जानते ही है। पढ़ाई कम सिलाई बुनाई ज्यादा होती है । हाहाहाहा।
गोपीचंद जी। हमारे जमाने में मास्टर जी स्कुल में तो पढ़ाया ही करते थे, साथ में कहते अगर कोई दिक्कत हो तो घर आके समझ लेना। लेकिन आज कल स्कूल में ही नही पढ़ाते वो घर बुला कर क्या पढ़ाएगा। और पढ़ाएगा भी तो वो बच्चों से फ़ीस वसुलेगा। और तुम लोगों ने एक चीज और नोटिस की है कि जो बच्चा अपने मास्टर के पास अलग से ट्युशन पढ़ता है वो अव्वल आता है कक्षा में। बाकी ठीक ठीक ही रहते है।
राधा किसन जी....हाँ ये तो है। जमाना इतना खराब आ गया है बस पूछो मत....जा नहीं पूछते हमें भी सब पता है। और ठहाके गुंजने लगे उन दोस्तों के बीच।
चौधरी साब...भाई सरकारी स्कूल में पढ़ाओ तो कोई स्टेंडर्ड नहीं उनका, कोई भी उच्च वर्गीय तो दूर मध्यम वर्गीय परिवार भी पढ़ा के खुश नहीं है वहाँ। सबको आज कल स्टैंडर्ड चाहिए। जिनके पास बच्चों को पढ़ाने की गुंजाईश नहीं वो ही पढ़ाते है इन सरकारी स्कूलों में।
राधा किसन जी.... हाँ जी ये तो है ही और ऊपर से पुरानी टूटी फूटी सी इमारत होती है। जाने कब गिर जाए। आए दिन सुनने को मिलता है...फलना जगह एक स्कूल की इमारत गिर गई। कभी कहीं तो कभी कहीं। ये तो शुक्र है ऊपर वाले का जब भी इमारत गिरी उस वक्त बच्चों की छुट्टी थी। शायद ही कहीं हुआ होगा जो बच्चों के साथ हादसा हुआ है।
गोपी चंद....तू इमारत की कह रहा है आजकल आरक्षण के कारण भी बहुत बुरा हाल है शिक्षा का।
अनुसूचित जाती, जन जाति इन लोगों के लिए सीटें आरक्षित रहती है चाहे ये लोग पढ़े या न पढ़े। इनको तो नौकरी हो या कॉलेज में दाख़िला पहले मिलता है। और जो योग्य छात्र है वो यूं ही बैठे रह जाते है।
चौधरी साब... सही बात है ज्ञान तो होता नहीं है ऐसे बच्चों के पास बस आरक्षण की वजह से सीट मिल जाती, चाहे कितने भी कम नंबर से पास हुआ हो वो, पर पहले उनका दाख़िला होता है। भ्रष्ट हो रही है हमारी शिक्षा व्यवस्था। जैसे शिक्षा शिक्षा न हुआ व्यवसाय हो गया है। हर जगह सिफारिश चलती है। कभी पैसों की तो कभी बड़े बड़े अधिकारी की। बहुत बुरा हाल हो गया है देश का।
राधा किसन जी...हाँ सो तो है। शिक्षा हमारे लिए कितनी ज़रुरी है पर वो यूं ही महँगी और भ्रष्ट होती जाएगी तो कैसे हमारी आने वाली पीढ़ी पढ़ पाएगी। ज़रा सोचो।
हाँ याद आया दो चार दिन हुए जब मैने एक पत्रिका में पढ़ा था शिक्षा पर ही लिखा था। भाई मैं उससे सहमत हूँ।
ज़रा सुनाना....हाँ ज़रुर
सुनो....
शिक्षा हमारे लिए उतनी ही ज़रुरी है जितनी साँस लेने के लिए हवा, भूख मिटाने के लिए भोजन, प्यास बुझाने के लिए पानी। शिक्षा के बिना हमारा जीवन बेकार है इसके बिना हम जानवर के समान होंगे अमीर हो या ग़रीब शिक्षा सबके लिए ज़रुरी है। शिक्षा विहीन समाज हमारा जंगल के समान हो जाएगा। शिक्षा प्राप्त करने के लिए हमें कोई खास उम्र की जरुरत नहीं होती है। हम किसी भी उम्र में शिक्षा पा सकते है।फिर भी शिक्षा तो बचपन से ही शुरु हो जानी चाहिए। क्यों कि एक शिक्षित व्यक्ति ही शिक्षित समाज का निर्माण कर सकता है। शिक्षा के अभाव में लोगों को मेहनत मज़दूरी करके ही अपना भरण पोषण करना पड़ता है। शिक्षा के अभाव में व्यक्ति अपना भविष्य सुरक्षित नहीं कर सकता है। उसे उज्जवल नहीं बना सकता है। हम अगर शिक्षित है तो हम अपने बच्चों को उनके पैदा होते ही उन्हे उनकी उम्र के अनुसार खाने पीने का ढ़ंग, उठने बैठने का सलीका, बड़ों का आदर सम्मान करना, छोटो के साथ प्यार से रहना आदि सिखा सकते है।
अगर माता-पिता शिक्षित होंगे तो उनके बच्चों की नींव मजबूत होगी। और जिस इमारत की नींव मजबूत होगी वो कभी नहीं गिरेगी। वो अपने बच्चों को सही समय पर पढ़ने के लिए स्कूल में बिठाएगे। शिक्षा ऐसी वस्तु है जिसे चोर चुरा नहीं सकता, हवा उड़ा नहीं सकती, आग जला नहीं सकती, पानी भीगा नहीं सकता, शिक्षा कभी घटती नहीं है, हम इसे जितना बाटेंगे ये उतना बढ़ेगी।
शिक्षा एक ऐसा खजाना है जो कभी खाली नहीं होता है और ये इतना विशाल होता है कि कभी भरता नहीं है, जितना मिले उतना थोड़ा है। समाज की बुराइयों को कुरितीयों को दूर करने के लिए शिक्षा सबसे बड़ा और मजबूत हथियार है। इससे न तो खून ख़राबा होगा और न ही अशांति ही फैलेगी।
शिक्षा का महत्व हमारे लिए जितना है उतना ही शिक्षा देने वाले का होता है यानि की शिक्षक का। शिक्षक हमें सही राह दिखाते है हमें भटकने से रोकते है। जीवन के पथ पर चलने के लिए मार्गदर्शन करते है। शिक्षक सिर्फ वे ही नहीं होते है जो विधालय में हमें पढ़ाते है, बल्कि वो सभी शिक्षक है जो हमें शिक्षा देते है। चाहे वो फिर घर में हो या बाहर। काफी हद तक हमारे शिक्षक की भूमिका हमारे घर वाले यानि कि माता-पिता, दादा दादी जैसे रिस्ते निभाते है।
हमारे शिक्षक को चाहिए कि वो हमें सही वक्त पर सही सलाह दे जिससे हम जीवन की परीक्षा में उर्तीण हो सके, सभी के चहेते बन सके। सभी के दिलो पर राज कर सके। हमारे अंदर आत्मविश्वास जाग सके। और जिस इंसान में आत्मविश्वास कूट कूट कर भरा होगा वो कभी असफल नहीं होगा।
सफलता की सीढ़ी पर चढ़ने के लिए पहली सीढ़ी आत्मविश्वास की चढ़नी होगी। दूसरी लगन की, तीसरी मेहनत की। इसी तरह सीढ़ी पर सीढ़ी चढ़ते जाएँगे। एक दिन ज़रुर अपनी मंज़िल पा सकते है।
और ये सीढ़ी तक ले जाएँगे हमें हमारे शिक्षक। हाँ हमारे शिक्षक हमें सीढ़ियां चढ़ाएंगे। हमारी मंज़िल तक पहुँचाने के लिए। इसलिए हमें शिक्षक को भगवान की तरह पूजना चाहिए। उनकी आज्ञा माननी चाहिए।
वाह भाई क्या बात है शिक्षा का महत्व बहुत अच्छा बताया है। ये जो लेख है न शिक्षा पर इसे संभाल कर रखना। मैं भी अपने घर वालो को पढ़ाऊगा। ठीक है गोपी जी।
चौधरी साब...लोग लेख तो लिख देते है पर कोई अमल नहीं होता है इन सब पर, बस यूं ही चलता रहता है जैसे वर्षो से चला आ रहा है। और यूं ही चलता रहेगा। आज कल ये ट्युशन के नाम पर कोचिंग सेंटर खुल गए है वो हमारे जमाने में कहाँ थे। बिलकुल स्कूलों की तरह ही कक्षाएँ हो गई है। जितने बच्चे स्कूल की कक्षा में होते है उतने ही कोचिंग सेंटर में भी। और उनकी फ़ीस भी कम नहीं होती है।
राधा किसन जी... छोड़ो... ये सब तो यूं ही चलता रहेगा। हम अकेले क्या कर सकते है। सब मिल कर करे तभी कुछ हो सकता है।
हम क्यों अपना समय खराब कर रहे है। चलो अपने अपने काम पर। एक बार फिर वो सब हँस पड़े। उठते हुए...
हाँ मुरारी कितने पैसे हुए चाय के... जी 3० रुपये। और वो तीनों अपनी अपनी राह चल दिये।