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समस्याओं की चाबियाँ

समस्याओं की चाबियाँ

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एक उक्ति है, स्वस्थ हो तन और स्वस्थ हो मन तो जीवन बने सुंदर। आज हमारे देश में, कई तरह की अहम समस्यायें हैं जैसे कि रहने के लिए छत, बढ़ती जनसंख्या, शिक्षा, अंधविश्वास आदि।

जनसंख्या 130 करोड़ के लगभग पहुँच गयी है। अधिकांश लोगों के पास रहने के लिए छत नहीं है, बच्चों के लिए शिक्षा सहज और सुलभ नहीं है ।कुप्रथाएं लोगों का अंधविश्वास बढ़ा रही हैं।

जीवन की प्राथमिक आवश्यकताएं ये हैं और इन समस्याओं की चाबी क्या है? यह दुरूह प्रश्न है।

प्रश्न है तो उत्तर भी होना चाहिए। चाबियाँ है हमारा संविधान। हम अपने अधिकारों का उपयोग तो करते हैं पर कर्तव्य पर उदासीन हो जाते हैं? समाज में अमीरी-गरीबी की असमानता में वृद्धि हो रही है। मज़दूर, कृषक, छोटे कार्य करने वाले वर्ग साधनहीन है, ग़रीब हैं, अनपढ़ हैं। बस जिये जा रहे हैं। ये वही वर्ग है जो गंडा, ताबीज़ और रिंग पहनने से समझते हैं कि समस्या की चाबियाँ मिल गयी ।

जनसंख्या नियंत्रण में जाति भेद है। कानून धर्मानुसार बंटा है। एक वर्ग अनेक पत्नियां कर सकता है, दूसरा वर्ग एक पत्न पत्नि में मर्यादित है।बच्चे भी तो उसी तरह पैदा होंगे ना?

जब तक शिक्षा सस्ती व प्रभावी नहीं होगी। जब तक समान कानून नहीं होंगे (देश का कानून कुछ हिस्सों में लागू नहीं होते)

जब तक देश में ऊँच नीच, जाति, अंधविश्वास, अमीरी-गरीबी की असमानता कम नहीं होगी, तब तक समस्या बढ़ती ही जानी है और यही तो समस्या रूपी तालों की चाबियाँ हैं।



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