सखा पांडुरंग
सखा पांडुरंग
सख्यारे घायाळ। झालो तुझ्यामुळे।
म्हणे मज खुळे। गाव सारे।
वेडा तो विठ्ठल। देतो हाती टाळ।
गळा घाली माळ। पाहोनिया।
रूप ते सुंदर। आम्हीच बंदर।
करितो अंदर। सुखसुखे।।
म्हणे आपणासी। करा रे भजन।
सोडून स्वजन। वारीत या।।
मी वेडा हो नादी। याच्याच लागलो।
चालून थकलो। त्याच्या पायी।।
आता म्हणे विठू। आलास की द्वारी।
संपली की वारी। लीलया रे।
उघड ते डोळे। पाहण्या मजला।
सुखची तुजला। लाभणार।।
पाहिले भरून। डोळे उघडून।
गेले ते उडून। भेद भाव।
माझा पांडुरंग। खराच श्रीरंग।
मी झालो की दंग। उभाउभी।।
माझ्यात श्रीरंग। श्रीरंगात मीच।
नाही उच्च निच्च। कोणीचंही।।
जन्माचे सार्थक। जन्म हा कृतार्थ।
जीवनात अर्थ। भरोनिया।।
सुखात आनन्द। आनंदात सुख।
पाहता श्रीमुख। एकदाचे।।