कलम
कलम
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ए कलम तू चल ,
मेरा मन लिखने को बेताब है ।
क्या लिखूँ, कैसे लिखूँगी ?
तू जानती है।
मेरी कथा, मेरी व्यथा
मेरे सारे दु:खों का पता
मेरी ख़ुशियों का ठिकाना
तू जानती है।
ए कलम तू चल,
मेरा मन लिखने को बेताब है।
समाज की अच्छाइयाँ
और बुराइयाँ ,
चारों और फैली अराजकता ,
और व्यभिचार ।
बेटियों के साथ होते दुराचार ।
इन सब बातों को लिखने से
दुःखी होगी तू ।
यह जानती हूँ ।
फिर भी ,
ए कलम तू चल
मेरा मन लिखने को बेताब है ।