दहेज के लोभी
दहेज के लोभी
पढ़े-लिखे औ सभ्य कहाते,
लोभ मगर वो छोड़ न पाते।
बेटा कितना लायक उनका,
छिपा भेद समझाते मन का।
कितनी मुश्किल से पाला है,
कितना ख़र्चा कर डाला है।
आज कमाता है वो जितना,
मोल बढ़ा है उसका उतना।
किंतु हम हैं बड़े संस्कारी,
माँग नहीं है कोई हमारी।
शादी बस अच्छी कर देना,
बरातियों को खुश कर देना।
कुछ बाराती खास हमारे,
जो हैं हमको बहुत प्यारे।
मिलनी उनकी अच्छी करना,
कुछ उपहार साथ में धरना।
अपनी बेटी को जो देना,
उससे नहीं हमको कुछ लेना।
आपकी है वो राजदुलारी,
उसकी खुशी आपको प्यारी।
कुछ गहने तो दे ही देंगे,
फर्नीचर भी ले ही देंगे।
कपड़ों की तो बात ही न है,
फैशन किससे भला छिपा है।
घर किराये के मुश्किल भारी,
एक फ्लैट की बात नियारी।
बस में धक्के कैसे खाये,
कार सवारी सबको भाये।
हमें न अपने लिये चाहिये,
बच्चों का हित सोच लाइये।
आखिर अभिभावक हम उनके,
ख़ुशियाँ देंगे उनको चुन के।