चलता रहता है शोर
चलता रहता है शोर
तुम रहती हो, मैं रहता हूँ
तुम कहती हो, मैं कहता हूँ
और कुछ बच्चों का शोर।
तुम घर सँवारती हो, मैं काम सँभालता हूँ
तुम दिन भर थक जाती हो
मैं थक कर आता हूँ, बच्चों की खटर-पटर
सब थक कर सो जाते हैं
और फिर हो जाती है भोर।
यही रोज का रोना है, यही रोज का गाना है
फिर काम पे जाना है, तुम्हें घर द्वार देखना है
बच्चों को पढ़ाना-लिखाना
और ज़िद करना बेसिर पैर की शाम हो जाना है
और फिर अँधेरा हो जाता है घोर।
कभी तुम रुठ जाती हो तो मैं मनाता हूँ
कभी मैं रुठ जाता हूँ गुस्से में तो तुम मनाती हो
बच्चों को लेकर साथ छुट्टी में
कभी मेले कभी पिक्चर में बाज़ार से आते हैं घर
मन के नाच उठते है मोर।
यूँ ही सुबह होती है, यूँ ही शाम होती है।
दिन-महीने सालों बनते
यूँ ही जीवन कटता है
तुम चलती हो हम चलते हैं
बिना किसी कसमें वादों के
संग-संग जीवन चलते हैं
और दुनिया का चलता रहता है ज़ोर।