गणना अथक करूँ मैं
गणना अथक करूँ मैं
गणना अथक करूँ मैं और पाऊँ सबको एक,
मित्र जीवन में भरते सुंदर रंग अनेक।
अलग-थलग सा जीवन जब भी लागन लागे,
मित्रों के आने से नवयौवन सा भर जावे।
सुरा-सुन्दरी भी क्या ह्रदय को पुलकित करती,
मित्रों के आँगन में जो मादकता है छलकती।
जब भी दुःख के बादल उमड़ उमड़ कर आते,
मेरे प्यारे मित्र छत मेरी बन जाते।
आमोद-प्रमोद का वो वातावरण बनाते,
बिन बोले ही मेरी हर पीड़ा हर जाते।
नभ समान आशाओं का सागर सा बन जाते,
चहुँ दिशाएँ मेरी स्वर्णिम वे कर जाते।
प्रेम प्रगाढ़ रस ऐसा फिर जो बहता जाता,
समय का कांटा जैसे उस पल में ही जम जाता।
उल्लास और ठहाके निरंतर लगते कहाके,
मधुशाला की सी वही फिर उन्मत्तता बनाके।
संदेसा सुना रहा हूँ मित्रों है मित्र कितना न्यारा,
नाम जीवन उसका मानो मेरे लिए हो सारा।
गगन छू सके जो ऐसी दृढ़ता मैंने पायी,
मित्रों के स्वरूप में माँ हो जैसे आयी।
