दस्तूर
दस्तूर
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वो प्यार ही क्या प्यार,
जिसे याद करके दो आँसू ना बहे।
वो उल्फत ही क्या सनम ।
रात को करवट बदलकर ना जागे।
वो सपने ही क्या,
जिसके पीछे नींद ना भागे,
वो इबादत ही क्या,
तेरे सजदे में जो सर ना झुके।
वो मोहब्बत ही क्या
जो रूह को तड़पा ना जाये।
वो ज़िन्दगी क्या,
जो मौत को गले लगाना ना जाने।
वो दुआ ही क्या,
जो दामन खाली करना ना चाहे,
वो मन्नत ही क्या,
जो झोली भरना ना जाने।
यंकीन कर इस बात पर,
कुदरत का उसूल है,
इक हाथ लेना इक हाथ देना,
जीवन का दस्तूर है।