कर्मयोगी श्री कृष्ण
कर्मयोगी श्री कृष्ण
छोड़ो कान्हा सौत मुरलिया
काहे अधर सजाते हो ।
ये तो मुझको बैरन लगती
काहे मुझे सताते हो ।
बैठ अधर पर तुमरे मुरली
जीवन राग सुनाती है ।
प्रेम ,प्रेम गाती रहती वो
मन मेरा हुलसाती है ।
कान्हा छुडूं न बाँह तुम्हारी
जाने तुम्हें नहीं दूँगी
तुमने प्रीत सिखाई कान्हा
कैसे जीवन काटूंगी ।
राधा मुझको जाना होगा
अब प्रेम पथ विस्तार किया
कर्म पथ की आ गई बारी
अब वो मुझे सजाने दो ।
लौटूंगा फिर कभी न राधा
तुमको ये बतलाना है ।
आँचल प्रेम तुम्हारे भर कर
मुझे शूल पथ जाना है ।
मेरी प्रियवर सांसो में तुम
सारा काम तुम्हारा है
मुझसे पहले नाम तुम्हारा
अब मेरे सँग आता है ।
बढ़ चला हूँ अब कर्म-पथ पर
तुम रहो प्रेम-पथ राधा
छोड़ो राधा बहिया मेरी
जीवन लक्ष्य है कुछ साधा ।