नारी
नारी
नारी सब के बीच जलाई जा रही है
कभी रेप तो, कहीं छेड़ी जाती हैं
वह बेचारी सिसकती, डरती हुई
चुपचाप सहती जा रही है मगर हम
सिर्फ कैंडल मार्च, निषेध करते हैं
नारी बिना जीवन अधूरा है
हम मानते हैं मगर क्या उसे
बराबरी का हक़ प्रदान करते हैं ?
नहीं बिलकुल नहीं जवाब आता है
हम सिर्फ ढोंग रचाते आये हैं
वह बेचारी त्याग समर्पण की मूर्ति हैं
सम्पूर्ण जीवन भर की कर्तव्य निभाती है
कभी मां, बहन तो कभी पत्नी के रूप में
नारी भगवान का दूसरा रूप हैं बेशक।
मगर हम उसे कठपुतली समझते हैं
भले ही हम उसे दुर्गा के रूप में पूजते हैं
किताबों में, फिल्मों में महान बताते हैं
मगर यह भी सच हैं की, हमने उसे आजतक
उसका बराबरी का हक़, मान सम्मान दिया
ना उसे जीवनसाथी बनने का सही मौका दिया