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जिंदगी

जिंदगी

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जब भी मैंने कोई शहर छोड़ा

छूट गयी पीछे बहुत सी चीजें

जो मायने रखती थी बहुत ज्यादा

उन पुराने जूतों से जो छूट गए थे वही

या वो की-चेन्स जो रह गए कहीं।

वो विचारों की पगडंडियाँ

जिन पर चलकर आज भी दूर निकल जाता हूँ।

या वो यादों के दरिया 

जिन में आज भी डूब जाता हूँ।

वो दीवारें जो मेरे गम में साथ-साथ रोई थी

या वो सड़कें जो 

मुझे सुला कर भी खुद न सोई थीI

यहाँ हवाओं में वो महक कहाँ,

बहुत बेस्वाद है,

जिन्दगी में पहले जैसा नमक कहाँI

वो हवा, पानी, बगीचे, घाटियाँ और वो झीलें,

कितने अपने से लगते थे वो सब के सबI

सब कुछ तो यहाँ भी वैसा ही है,

पर जाने क्यों मुझको डसते हैं अबI

हर पल लगता है, जैसे बुला रहे हैं मुझको 

उन शहरों के साये,

पर पता नहीं 

ये जिंदगी मुझे अब कहाँ ले जायेI

खैर जहाँ भी जाये, ले चल मुझे,

ऐ जिंदगी, मैं तेरे साथ ही चलता हूँ

बहुत रह लिए अजनबी से हम दोनों,

आज तुझसे तेरा बन के मिलता हूँ।


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