बसंत -फागुन आयोट
बसंत -फागुन आयोट
फागुन बघरों है चहुंओर ,निकर आओ बाहिर आगरे बारी!
राधा, रुक्मिणी सब मिलि आओ,छिपो यहीं पे गिरधारी।।
अरी ओ ! मीरा! निकर आओ, बाहिर आगरे बारी
उगत विवस्वत घट भरि लाए, माणिक लाली हितकारी।
काश्मीर में केसर घोर्यो, बरसाने भरी पिचकारी।।
अरी ओ मथुरा बारी... ! निकरि आओ बाहिर आगरे बारी..
फागुन बघरो है चहुंओर...निकरि आओ बाहिर आगरे बारी
धानी रंग धरा को ,बापे,पियरी-पियरी फुलकारी।
सतरंगी तितली गोपिनियाँ ,भंवर कारे बने बनवारी।।
अरी ओ जयपुर बारी..... ! निकरि आओ बाहिर आगरे बारी...
फागुन बघरो है चहुंओर....निकरि आओ साहिर आगरे
वेगमयी सब नदियां ठहरीं यों, नारि समर्पित प्रतिहारी।
भरि रहीं रवि रश्मियन के रंग, लेयो खेलो होरी नर नारी।।
अरी ओ ग्वालियर बारी.! निकरि आओ बाहिर आगरे बारी
फागुन बघरो है चहुंओर...निकरि आओ बाहिर आगरे बारी
आशा,राधा,घर तैं निकरौ,पहन धवल नवल साड़ी।
ऐसो डारौ रंग सबन पे,एक रंग भयीं, ढ़ूँढ़ रहे त्रिपुरारी।।
अरी ओ गोकुल बारी....!निकरि आओ बाहिर आगरे बारी
फागुन बघरो है चहुंओर...निकरि आओ बाहिर आगरे बारी
रागमयी कोकिल मड़रावत,डारी-डारी मतवारी।
कुहु-कुहू रस भरहि सुरीली,दीखे सब रंगन पै भारी।।
अरी ओ पुणे बारी ...! निकरि आओ बाहिर आगरे बारी
फागुन बघरो है चहुंओर...निकरि आओ बाहिर आगरे बारी
फागुन बघरो है चहुंओर,निकरि आओ बाहिर आगरे बारी
अरी ओ,निकरि आओ बाहिर आगरे बारी..
