कई बीघे जमीन की स्वामिनी
कई बीघे जमीन की स्वामिनी
रात दिन बच्चों के भविष्य को
स्वेटर के फंदों सी बुननेवाली माँ
जब बच्चों से कुछ सीखती है
अपने नाम का कोई फंदा उनकी सलाई पर देखती है
तो काँपता शरीर गर्मी पा
स्थिर हो लेता है
और माँ कई बीघे जमीन की स्वामिनी हो जाती है ...
बच्चे जब घुड़कते हैं
हिदायतें देते हैं
तो माँ का बचपन लौट आता है
सफ़ेद बालों का सौंदर्य अप्रतिम हो उठता है ...
एकमात्र संबोधन - 'माँ' ...
लाल परी की छड़ी सा होता है
पुकारो ना पुकारो
माँ सुन ही लेती है ...
उसकी हर धड़कन
इस पुकार का महाग्रंथ होती है
जिसके हर पन्नों पर
दुआओं के बोल होते हैं ...
काला टीका
रक्षा मंत्र के रूप में
माँ प्राकृतिक अँधेरों के आँचल से
हंसकर चुरा लेती है
ऐसी छोटी छोटी चोरियां
बच्चे के एक सच के लिए सौ झूठ बोलना
माँ के अधिकार क्षेत्र में आता है
बच्चे पर आनेवाले दुःख को
जादू से आँचल में बांधना
माँ को बखूबी आता है
अमरनाथ गुफा सी क्षमता
माँ के प्यार में होती है ...
उसी माँ के लिए
बच्चे जब गुफा बन जाते हैं
तो शरद पूर्णिमा की चांदनी
माँ का सर सहलाती है
जागी हुई आँखों में भी
कोई थकान नहीं होती
माँ ....
वह उस गुफा में
नन्हीं सी गिलहरी बन जाती है
बच्चों का प्यार
मजबूत टहनियों की तरह
माँ का ख्याल रखते हैं
ऊन के फंदों की तरह
माँ का सुख बुनते हैं
अपनी अपनी सलाइयों पर
और माँ
बोरसी सी गर्माहट लिए
अपने बुने स्वेटरों की सुंगंध में
निहाल हो खेलती है
नए ऊन के रंगों के संग
नए सिरे से ....