खिड़की बंद पड़ी है कब से
खिड़की बंद पड़ी है कब से
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खिड़की बंद पड़ी है कब से
फितरत में स्वार्थ भरा जब से
नहीं साथ होता कोई मंज़िल-ए-सफर में
मंज़िल मिलते ही रूबरू होते हैं लोग आपसे।।
खिड़की बंद पड़ी है कब से,
ज़ेहन में भ्रष्टाचार भरा जब से।
नहीं बदल सकता कोई मंज़र-ए-महफ़िल में
ईमानदार बनते ही साज़िशें होती हैं आपसे।।