नफरत
नफरत
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नफरत एक छुद्र बीज सी
ज्यों ही लेती मन में प्रवेश
चुंबक सी शक्ति रखकर
खींचती कुविचार अनेक।
सुविचारों को दूर खदेड़ कर
अट्टहास कर फन फैलाती ।
मन के संग हृदय, हाथ
पेट, आंत में घुसती जाती।
शत्रु दल की फौज खड़ी कर
क्रोध घी सा डालती जाती।
अपनी ही विदग्ध ज्वाला में
स्वयं की चिता स्वयं सजाती।
अद्भुत सृष्टि की औषधि एक ही
पारस पत्थर सम ,बूंद प्रेम की।