आत्मजयी
आत्मजयी
जब मैने खुद को एक शून्य अंधकार में फेंक दिया
दूर क्षितिज में एकांत-
घोर अंधकार में टिमटिमाते नक्षत्रों के बीच
लाचार, बेबस आकाश का सूनापन
हाथों में लिए अपने अस्तित्व को
पहचान की कोशिश में छटपटाता रहा -
एक नाकाम उड़ान के टूटे हुए पंख की तरह।
अज्ञात अंधकार में रोशनी की
एक झलक पाने के लिए न जाने कितने दिन,
महीनों, साल इंतज़ार करता रहा।
कई परछाइयाँ आतीं रही, जाती रहीं
कहाँ से आती हैं, कहाँ जाती हैं ये?
अज्ञात दुनिया है- और मैं देखता रहा
एक शून्य की तरह, ढूँढता रहा वही,
कोटि सूर्य में प्रकाश की एक किरण,
जहाँ से दुनिया शुरू भी होती है और खत्म भी।
कहाँ गयी वह अप्रतिभ रोशनी?
जहाँ मैं एक अज बन पैदा हुआ,
रक्त मांस के शरीर में एक आत्मा की परछाईं
एक पिंजरे में कैद पक्षी की तरह।
हज़ारों लाखों चेहरे, कुछ जाना पहचाना,
कुछ अनजाना, कभी कुछ भयानक चेहरे
आ कर सामने खड़े हो जाते
उन में से न जाने किसकी तलाश थी।
मैं ढूँढते-ढूँढते थक जाता, थक कर बैठ जाता
फिर भी कोशिश जारी थी, मगर ये
नहीं जानता था कि यह तलाश
किसके लिए और क्यों..?
अज्ञात अंधकार में एक-एक अशांत जीवन
रंगमंच पर अपना पात्र खत्म कर गायब हो जाता।
मैं बस देखता रहा, सहसा कुछ क्षण अभिनय मात्र-
हर चेहरे पर कामनाओं की लहर,
जो कभी पूर्ण हो पायी भी, या नहीं...?
अपवाद पीड़ा का स्पर्श, कहीं विषाद
तो कहीं विवाद, कई अशांत, कई विचलित।
जैसे कोई मरीचिका के पीछे -
एक निष्प्रयोजन चेष्टा।
धुंधला सा एक चेहरा शायद मेरी बहन... या बेटी...
ओली में एक नन्हा सा चेहरा
आँखों में कुछ बूँद मासूम उपद्रव -
जो बिन पलक झपकाये मुझे देख रहा।
शायद ज़िंदगी के मायने समझने के लिए
कुछ सवाल कर रहा है।
कुछ देर बाद शायद वह भी
रंगमंच के पीछे कहीं... या...
कोई यौवन की तूलिका पर
संयम और संस्कृति की पृष्ठभूमि को
निभाते हुए अपने पात्र के साथ
पूरा इनसाफ़ कर पाए और पृथ्वी पर
सीना तान कर अपनी विजय का ऐलान करे।
शायद... मैं उसी नज़र की तलाश में हूँ,
जिसमें आकाश की मर्यादा हो,
सूर्य का प्रकाश हो, चाँद तारों को
छू लेने की आकांक्षा हो,
कुछ भी कर गुजरने का जुनून हो।
मैं उसी एक नज़र को युग-युग से
तलाश रहा हूँ, शून्य में रह कर मैं-
उस नज़र में खुद को ढाल कर
चैन की साँस लिए सृष्टि के
हर प्रश्न को, अँधेरे के हर कण को
उजाले की ओर मोड़ दूँ और मैं…
जगत के कण-कण में, रेत की हर बिंदु में,
जल की हर बूँद में फैल कर रीत जाऊँ।
©लता तेजेश्वर