शिवशंकर
शिवशंकर
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शिव ही सुख का का मूल हैं, शिव ही शक्ति त्रिशूल ।
शिव बाघाम्बर धारते, भुजंग गले यों, हों जैसे वे फूल।।
सृष्टि रचयिता निज कर लिया , जग हित में विषपान।
नीलकंठ तब कहे "मीरा', जिसे तारें बिना जलयान।।
भांग, धतूरा, दूध, से, जिनका करें प्राणी अभिषेक।
नंदी बैठे द्वार पर, पद मिला उन्हें अति परम विशेष।।
