जिस्म और जान
जिस्म और जान
अपने जिस्म से जान को जाते हुए देखा है
हाँ! मैंने मौत को आते हुए देखा है
एक जिस्म ही है जो मेरा अपना था
बाकी सब कुछ अनजाना सा सपना था।
आया था जिंदगी में काफी तम्मनाएं लेकर
पाया तो कुछ कुछ पर बहुत कुछ खोकर
महसूस हुआ कि बहुत कुछ अभी पाना है
लोगों को जिंदगी का मतलब समझाना है
एक महबूबा थी जिससे मुझे मोहब्बत हुई
दिल के इस गहराई को वो आकर छुई
पर धोखा दिया उसने कुछ सोचे बिना
मैं भी चला आया वहां से उसके रोके बिना
माँ बाप से मोहब्बत और उन्हीं से यारी थी
वो थे तो मैं और मेरी सारी दुनियादारी थी।
ना रहे वो अब ना मेरे सर पे उनका हाथ रहा
बस मेरा जिस्म ही है जो जान के साथ रहा
हारा जिंदगी से ना किसी उम्मीद में अड़ा था
बादलों से घिरे हुए सुनसान जगह पड़ा था
एक परिंदे को फिर मेरी तरफ आते देखा
जैसे मेरे जिस्म से जान को बुलाते देखा।
रोकना चाहता था जान को जिस्म के लिए
पर जीता भी तो मैं आखिर किसके लिए
सूरज के साथ मैं भी उसी शाम में ढल गया
एक जान ही था वो भी जिस्म से निकल गया।