Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Diwakar Pokhriyal

Others

3  

Diwakar Pokhriyal

Others

प्रेम विरह

प्रेम विरह

1 min
8.3K


  

सिरहाने से ना हिलती थी, मौत से जब लड़ा था मैं
चूम के पिघलाती थी वो, गम से जब उजड़ा था मैं  

अंधा था शायद मारा था, जो भी था मैं बेचारा था 
पाने को काग़ज़ के टुकड़े, ज़िद में बस अड़ा था मैं

लाखों आशाऐं थी मुझसे, हैरत के सागर में छोड़ा  
हीरा समझी थी वो  मुझको, अनसुलझा सा  झगड़ा था मैं 

बरखा आई, सावन आया, ना कोई उसकी ख़बर लाया
गर आती तो पा जाती वो, जिस रस्ते में खड़ा था मैं

आँसू आऐ, दिल फिर रोया, सोचा क्या पाया, क्या खोया
झाँका जो दिल के भीतर तो, एहसासो में सड़ा था मैं

तारों की निर्मल छाँव में, बैठा था उसके गाँव में
पायल की छन छन सुनने को, मिट्टी में बस पड़ा था मैं

सीने से लगाऐ रखती थी, ममता ऐसी थी उसकी 'रब'  
वो तो भोली सी गईया थी, बेपरवाह सा
बिगड़ा था मैं     

 


Rate this content
Log in