ग़ज़ल
ग़ज़ल
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बातों ही बातों में भला क्या बात हो गयी।
इक पल की दोस्ती तेरी, सौगात हो गयी।
मेहनत से जो मिला है, कमाई वही तेरी।
गर माँग कर मिला है तो खैरात हो गयी।
भटके हुए तलाशते हैं अपना आशियाँ।
दिन को चले जो ढूँढने तो रात हो गयी।
मिलते हैं ग़म तो दर्द के बादल भी छायेगें।
यूँ आँसुओं की आँख से बरसात हो गयी।
कुछ छोटे छोटे पल से मिली है हमें खुशी
यूँ धीरे धीरे देखिए इफ़रात हो गयी।
बादल गरज रहे थे चमकती थी बिजलियां।
रुख़सत हुई तू फिर शुरू बरसात हो गयी।
तन्हा सफ़र में सोचता है चाँद यूँ "कमल"
तारों की गुम कहाँ पे वो बारात हो गयी।