आइये इस संस्कार वृक्ष की मिलकर हम स्थापना करें। आइये इस संस्कार वृक्ष की मिलकर हम स्थापना करें।
लिखने वालों को भी अकेलापन कभी छू सका है क्या भला ? लिखने वालों को भी अकेलापन कभी छू सका है क्या भला ?
ओ बीते दिन याद कर बार-बार अपने आप से प्रश्न करता अरे ओ मेरे बीते दिन। ओ बीते दिन याद कर बार-बार अपने आप से प्रश्न करता अरे ओ मेरे बीते दिन।
जिसकी गहराई का पता नहीं, अथाह सागर सी है हमारी सोच की क्षमता। जिसकी गहराई का पता नहीं, अथाह सागर सी है हमारी सोच की क्षमता।
लेखक : मिखाइल बुल्गाकव अनुवाद : आ. चारुमति रामदास लेखक : मिखाइल बुल्गाकव अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
क्योंकि लोगों को बस यही पता था कि असुरक्षित यौन संबंध से ही एड्स फैलता है क्योंकि लोगों को बस यही पता था कि असुरक्षित यौन संबंध से ही एड्स फैलता है