ज़रिया ( KKH 4 )
ज़रिया ( KKH 4 )
शुरुआत "कहानी शुरू करने से पहले मैं आप सब से एक विनती करना चाहूँगा अगर आप भगवान पर विश्वास करते हैं तो ही इस कहानी को पढ़ियेगा और अगर नहीं करते हैं तो ये कहानी आपके लिए नहीं है।"
हमेशा की तरह मैं मनन और सुखचैन चाय पीने के लिए टपरी पर बैठे हुए थे तभी वहाँ एक सज्जन आते हैं
शिव "अरे रामप्रसाद जी इतने महीनों से कहाँ गायब थे आपको तो लगभग 6 महीनों बाद देखा है"
रामप्रसाद "तुम लोग मेरी एक मदद करोगे ?
सुख "हाँ जी कर सके तो कर देंगे।"
रामप्रसाद "ये एक चिट्ठी है मुझे इसे इसके पते पर पहुंचाना है पर मुझे कुछ ज़रूरी काम है इसलिए तुम लोग पहुँचा दोगे क्या ?
मनन "हाँ अंकल हमें देदो हम पहुँचा देंगे।"
शिव "किस पते पर देना है इसे"
रामप्रसाद "पता चिट्ठी के ऊपर लिखा हुआ है"
शिव "ठीक है पहुँचा देंगे।"
रामप्रसाद वहाँ से चले जाते हैं उसके बाद हम चिट्ठी पर पता देखते हैं उसपर लिखा होता है ( गुप्ता जी पी डब्लू डी , माया )
शिव "यार इसपर तो बस इतना ही लिखा है पूरे मुंबई में पी डब्लू डी के कई विभाग होंगें अब गुप्ता जी कौन है कौनसे डिपार्टमेंट में हैं कैसे पता चलेगा।"
मनन "अरे छोड़ यार शिव हमको क्या है बोल देंगे कि इसपर पूरा पता लिखा ही नहीं था"
मनन की बात तो सही थी लेकिन तभी मुझे अंदर ही अंदर ये लगा कि कुछ तो ग़लत है
शिव "एक बार इस चिट्ठी को खोलकर देखते हैं"
सुख "ओ पाजी किसी की चिट्ठी खोलकर देखना तो ग़लत है ना"
शिव "हाँ लेकिन पता नहीं क्यों मुझे लग रहा है एक बार पढ़ लेते हैं क्या लिखा है इसमें।"
मैंने वो चिट्ठी खोली और शायद मेरा फैसला सही था क्योंकि उस चिट्ठी में जो लिखा था उसे पढ़कर हम तीनों अंदर से हिल गए,उसमे लिखा था
( पापा, ये चिट्ठी मैं एक छोटी बच्ची से लिखवा रही हूँ मेरे पति और सास ने मुझे घर के एक अंधेरे कमरे में बंद कर दिया है 4 दिन से ठीक से कुछ खाने को भी नहीं दिया मुझे और हर दिन मुझे मारते हैं।" इस कमरे में एक छोटी सी खिड़की है जिसमें से आवाज़ लगाकर मैंने इस बच्ची को रोका है और वोही ये चिट्ठी लिख रही है आप जल्दी आकर मुझे बचा लो वरना ये लोग मुझे मार डालेंगे )
शिव "अबे यार ये लड़की तो बड़ी मुसीबत में फस गई है यार"
सुख "शायद इसका नाम माया है और इसके पापा का नाम गुप्ता जी जो कि पी डब्लू डी में काम करते हैं"
मनन "शिव शायद हमें राठौड़ सर की मदद लेनी चाहिए।"
शिव "हाँ मैं कॉल करता हूँ उन्हें।"
शिव "हेलो राठौड़।"
राठौड़ "शिव अभी फ़ोन रख अभी मैं एक किडनैपर को पकड़ने आया हूँ बात नहीं कर सकता।"
शिव "अरे यार ये राठौड़ ने फ़ोन काट दिया।"
सुख "लेकिन हमें इस लड़की की मदद तो करनी ही होगी।"
शिव "एक काम कर सुख नेट पर पता कर कि मुंबई में पी डब्लू डी के कितने डिपार्टमेंट्स हैं और अड्रेस क्या है उनका।"
अब हमें सभी डिपार्टमेंट्स में जाकर गुप्ता जी के बारे में पता करना था जिनकी बेटी का नाम माया हो काम मुश्किल था पर किसी की ज़िंदगी बचा सकता था"हम एक एक करके सभी जगह गए लेकिन कुछ पता नहीं चल सका शाम हो चुकी थी और हम थक चुके थे"
मनन "यार मैं तो बहुत थक गया हूँ यार"
शिव "तू परेशान मत हो तू कहे तो तुझे घर छोड़ देते हैं मैं और सुख देख लेंगे सब"
मनन "नहीं मैं तुम लोगों को छोड़कर नहीं जाऊंगा।"
सुख "हमने जो लिस्ट निकाली थी उसके हिसाब से अब एक ही ऑफिस बचा है वहाँ और देख लेते हैं"
अब हम हमारी लिस्ट के आख़िरी ऑफिस गए और वहाँ हमने एक आदमी से पूछा।"
शिव "अरे सुनिए भाईसाब यहाँ गुप्ता जी काम करते हैं क्या।"
वो आदमी "हाँ कौनसे वाले।"
सुख "कौनसे वाले मतलब।"
वो आदमी "यहाँ दो गुप्ता जी काम करते हैं एक मोहन गुप्ता एक अनिल गुप्ता।"
शिव "जिनकी बेटी का नाम माया है ना वो"
वो आदमी "जहाँ तक मुझे पता है दोनों की ही बेटी का नाम माया है"
शिव "एक काम कीजिए आप हमें दोनों गुप्ता जी का अड्रेस दे दिजीए।"
वो आदमी "क्यों ? कौन हो तुम लोग"
शिव "अरे मैं तो आपको बताना ही भूल गया मैं शिव गुप्ता वो दोनों गुप्ता जी को अपनी शादी का कार्ड देना था मुझे लेकिन वो तो ऑफिस में हैं ही न"हीं
वो आ
दमी "कार्ड कहाँ हैं ?
शिव "कार्ड तो बाहर कार में रखे हैं ना मैंने सोचा पहले पूछ लेता हूँ कि गुप्ता जी हैं कि नहीं।"
वो आदमी "तो तुमने उनकी बेटी का नाम क्यों पूछा।"
शिव "वो मुझे नहीं पता था ना कि दोनों गुप्ता जी यहीं काम करते हैं इसलिए कंफर्म किया।"
वो आदमी "हम्म ठीक है"
बाहर आकर सुख ने मुझसे पूछा।"
सुख "ओ पाजी आपने झूठ क्यों बोला कि तुसी गुप्ता हो और आपकी शादी है"
शिव "कहना पड़ता है अगर नहीं कहता तो अड्रेस कैसे मिलता।" खैर चलो अब दोनों अड्रेस पर चलते हैं"
हम पहले अनिल गुप्ता के घर गए और डोर बेल बजाई
अनिल गुप्ता "जी कहिए
शिव "आप पी डब्लू डी वाले गुप्ता जी हैं ?
अनिल गुप्ता "जी
शिव "जी हमें माया से मिलना था
अनिल गुप्ता "अरे तो सीधे बोलो ना कि माया के दोस्त हो मैं अभी बुलाता हूँ
माया आती है इसका मतलब ये गुप्ता जी वो नहीं थे जिन्हें हम ढूँढ रहे थे
शिव "अरे सॉरी अंकल लगता है हम ग़लत पते पर आ गए हैं हमें मोहन गुप्ता जी के घर जाना था उनकी बेटी का नाम भी माया है तो गलतफहमी हो गई थी"
अनिल गुप्ता "अच्छा अच्छा कोई बात नहीं वैसे वो मेरे अच्छे दोस्त हैं"
शिव "तो आप उनका पता बता सकते हैं"
अनिल गुप्ता "हाँ क्यों नहीं।"
अब हम मोहन गुप्ता जी के घर गए और डोर बेल बजाई
मोहन गुप्ता "जी"
शिव "अगर मैं ग़लत नहीं हूँ तो आप p" w "d में हैं और आपकी बेटी का नाम माया है और उसकी शादी हो चुकी है"
मोहन गुप्ता "हाँ पर आपको कैसे पता?
शिव "आपकी बेटी बड़ी मुसीबत में है और उसने ये चिट्ठी भेजी है"
मोहन गुप्ता (चिट्ठी पढ़ते हुए) "मेरी बेटी इतनी बड़ी मुसीबत में है और मुझे पता भी नहीं है"
तभी मुझे राठौड़ का फ़ोन आता है
राठौड़ "शिव तूने सुबह फ़ोन किया था क्या बात है सब ठीक तो है ना"
शिव "राठौड़ मैं तेरी किसी से बात करवा रहा हूँ प्लीज़ करले।" गुप्ता जी फ़ोन पर इंस्पेक्टर राठौड़ हैं इन्हें सब बता दीजिए।"
गुप्ता जी राठौड़ को सारी बात बताते हैं और फ़िर राठौड़ पुलिस की एक टीम लेकर माया के ससुराल पहुंच जाता है और स्थानीय पुलिस की मदद से वो माया को बचा लेता है और स्थानीय पुलिस उसके पति और सास को गिरफ़्तार कर लेती है और फ़िर सब ठीक हो जाता है
अगले दिन सुख और मनन मेरे घर आते हैं उस वक़्त पापा पुराने पेपर रद्दी में देने के लिए निकाल रहे होते हैं तभी मेरे हाथ में 6 महीने पुराना पेपर आ जाता है और उसकी एक न्यूज़ देखकर मैं चौंक जाता हूँ और फ़ौरन सुख और मनन को बताता हूँ
शिव "अबे ये देखो क्या लिखा है"
ख़बर पढ़कर वो दोनों भी चौंक जाते हैं खबर होती है (मशहूर हीरा व्यापारी रामप्रसाद का दिल का दौरा पड़ने से निधन)
शिव "ये कैसे हो सकता है यार जिस इंसान को हम कल ही मिले हैं वो 6 महीने पहले कैसे खतम हो सकता है"
मनन ( डरती आवाज़ में ) "भाई कोई भूत तो नहीं था वो"
सुख "नहीं यार हो सकता है ये कोई और रामप्रसाद हो"
शिव "यार वो ही है फ़ोटो बना हुआ है"
सुख "तो ये हुआ कैसे ?
शिव (मुस्कुराते हुए ) "यार पहले सिर्फ़ सुना था आज देख भी लिया कि भगवान अपने भक्तों की मदद किसी ना किसी रूप में करते ही है"
मनन "मतलब वो भगवान थे"
शिव "हो सकता है हमारी आँखों को कल धोखा हो गया हो जिसे हमने रामप्रसाद समझ लिया हो सकता है कि वो उससे मिलता जुलता कोई व्यक्ति हो"
लेकिन हाँ यार भगवान ने उस लड़की की मदद के लिए हमें ज़रिया बनाया ये तो मानना पड़ेगा अब पता नहीं कल जो आदमी दिखा वो कौन था और हम उसे कौन समझ बैठे लेकिन भगवान चाहते थे कि हम उस लड़की की मदद करें इसलिए ये सब हुआ पर हाँ जो हुआ अच्छा हुआ।"
अंत "पता नहीं वो इंसान कौन था जिसे हम स्वर्गीय रामप्रसाद समझ बैठे और मेरे मुह से उसे देखकर रामप्रसाद क्यों निकला।"।"
श्री कृष्ण ने अपने पूरे जीवन में हर उस व्यक्ति की मदद की जिसको उनसे मदद की आस थी और आज के समय में भी वो मदद करते हैं लेकिन उस लड़की की मदद उस बच्ची के रूप में करते हैं
हमें वो चिट्ठी उस लड़की के पिता तक पहुंचाने का ज़रिया बनाकर उनकी मदद करते हैंएक ऐसा इंसान जिसे हम ठीक से पहचान भी नहीं पाए उसके रूप में मदद करते हैं।"