सच्चा दोस्त ( KKH 5 )
सच्चा दोस्त ( KKH 5 )


शुरुआत :- हर दिन की तरह सुबह सुबह हम सबका वही रूटीन पापा पेपर पढ़ रहे हैं मम्मी काम कर रही हैं और नव्या कमरे में पढ़ाई कर रही है फ़िर मम्मी सबको नाश्ते के लिए बुलाती हैं
मम्मी :- चलो आओ सब नाश्ता तैयार है और हाँ आज नाश्ता थोड़ा अलग है.
नव्या :- अलग मतलब ?
मम्मी :- आज नाश्ता लावण्या ने बनाया है.
पापा :- अरे वाह ! तुम्हें कुकिंग भी आती है बेटा।
लावण्या :- हाँ अंकल पूरा तो नहीं लेकिन थोड़ा बहुत बना लेती हूँ.
पापा :- चलो आज तुम्हारे हाथ का नाश्ता खाकर भी देखते हैं वैसे बनाया क्या है.
मम्मी :- उपमा।
शिव :- खाने लायक तो होगा ना.
नव्या :- अरे भैया दीदी ने बनाया है तो अच्छा ही होगा।
लावण्या :- थैंक यू.
शिव :- हाँ वो तो बाद में पता चलेगा।
मम्मी :- अब बातें बंद करो और खाओ.
अरे यार क्या बनाया है ये उपमा में नमक डाला है या नमक में उपमा और हाँ ऐसा सिर्फ़ मैं नहीं सब ही सोच रहे होंगे।
लावण्या :- कैसे बना है ?
शिव :- इसमें बहुत ज़्यादा।
मम्मी :- इसमें बहुत ज़्यादा स्वाद है यही कहना चाहा रहा है ये.
लावण्या :- अच्छा फ़िर मैं भी खाकर देखती हूँ.
शिव :- हाँ हाँ शुभ काम में देरी कैसी।
लावण्या :- आँटी आपने तो कहा था ये अच्छा बना है पर मैंने तो गलती से इसमें बहुत सारा नमक डाल दिया । सॉरी मेरी वजह से आप सब का नाश्ता खराब हो गया.
पापा :- कोई बात नहीं बेटा कभी कभी हो जाता है.
तभी दरवाज़े की घँटी बजती है.
पापा :- नव्या देखो ज़रा कौन आया है.
नव्या दरवाज़ा खोलती है
नव्या :- जी कहिये।
श्यामसुंदर :- कन्हैया लाल है घर पर.
नव्या :- हाँ हैं ना आइए । पापा कोई आपसे मिलने आएं हैं.
पापा :- अरे श्यामसुंदर क्या बात है मेरे बचपन का दोस्त इतने दिनों बाद तुझे याद आई मेरी।
श्यामसुंदर :- नहीं ऐसा नहीं है बस कुछ काम में व्यस्त था.
पापा :- मैं तुझे अपनी फैमिली से मिलवाता हूँ.
पापा :- ये मेरी पत्नी मोहिनी,ये मेरा बेटा शिव,ये मेरी बेटी नव्या और ये लावण्या पढ़ाई करने के लिए यहाँ रहती है मेरी बेटी जैसी ही है.
श्यामसुंदर :- आप सब से मिलकर बहुत अच्छा लगा.
पापा :- अकेले आया है तू भाभी नहीं आई.
श्यामसुंदर :- नहीं वो उसे थोड़ा काम था.
कुछ तो अजीब बात है श्यामसुंदर अंकल हमारे घर को बड़े गौर से देख रहे हैं जैसे उन्होंने पहली बार ऐसा घर देखा हो.
श्यामसुंदर :- क्या बात है तूने तो बड़ा अच्छा घर बनाया है.
पापा :- अरे मेरा कुछ नहीं है सब बच्चों का ही है मेरे शिव की मेहनत से ही इतना अच्छा घर बन सका है.
श्यामसुंदर अंकल मुझे बड़ी अलग तरह से देख रहे थे तो मैंने सोचा कि इनके मन की बात सुनी जाए
श्यामसुंदर ( मन में ) :- वाह कितना भाग्यशाली है कन्हैया जो इतना अच्छा बेटा मिला उसे.
ये सुनकर मैं भी मिस्कुराने लगा अब अपनी तारीफ़ भला किसे अच्छी नहीं लगती
पापा :- चल आराम से बैठ कर बात करते हैं । और सुना कैसा है तू भाभी कैसी है?
श्यामसुंदर :- सब ठीक है भगवान की कृपा से.
पापा :- वैसे तू रहता कहाँ है आजकल।
श्यामसुंदर :- लोनावला में रहता हूँ वहीं छोटी सी दुकान है राशन की.
पापा :- छोटी बड़ी नहीं होती दुकान दुकान होती है आज छोटी है भी तो कल बड़ी हो जाएगी।
पापा :- तू लोनावला से आया है तो आज तो जाने नहीं दूँगा आज तो तुझे रुकना ही पड़ेगा।
श्यामसुंदर :- अरे मैं कहाँ ज़्यादा दूर से आया हूँ शाम तक भी निकला तो या रात तक भी तो आराम से पहुँच जाऊँगा लेकिन रुक नहीं सकता।
वैसे अभी शनिवार और रविवार की छुट्टी आ ही रही है तो तुम लोग दो दिन के लिए मेरे घर क्यों नहीं आ जाते।
पापा :- हाँ यार आईडिया तो अच्छा है क्या बोलते हो सब.
शिव :- पापा आपका मन है तो बिल्कुल चलेंगे।
पापा :- वैसे तुझे रात का खाना खाए बिना जाने नहीं दूँगा।
रात भी हो जाती है खाने की टेबल पर हम सब बैठे होते हैं तभी पापा मुझे इशारा करते हैं कि मैं उनके मन की बात सुनूँ।
पापा ( मन में ) :- शिव ज़रा श्यामसुंदर की मन की बात सुन मुझे वो ज़रा परेशान लग रहा है.
शिव ( धीमी आवाज़ में ) :- नहीं पापा अंकल तो अपने मन में कुछ नहीं सोच रहे.
पापा :- क्या बात है श्याम तू कुछ परेशान लग रहा है.
श्यामसुंदर :- नहीं मैं कहाँ परेशान हूँ बस थोड़ा थक गया हूँ.
पापा :- मैं कह रहा हूँ ना आज रूक जा.
श्यामसुंदर :- नहीं नहीं मेरी पत्नी की तबियत ठीक नहीं रहती इसलिए मुझे जाना पड़ेगा लेकिन तुम लोग ज़रूर आना परसों।
मम्मी :- हाँ हम सब आएंगे।
श्यामसुंदर अंकल चले जाते हैं और फ़िर उनके घर जाने का दिन आता है.
पापा :- अरे जल्दी आओ सब लेट हो रहा है आज पहली बार मैं अपने दोस्त के घर जाने वाला हूँ.
सब कार में बैठते हैं और लावण्या आगे बैठ जाती है.
शिव :- तुम क्यों आगे बैठ गई.
लावण्या :- मुझे पीछे बैठने से अच्छा नहीं लगता सर घूमता है.
शिव :- अरे मैं आराम से ड्राइव करूँगा कुछ नहीं होगा पर तुम पीछे बैठो।
मम्मी :- बैठने दे ना तुझे क्या है.
शिव :- मुझे अनकंफर्टेबल फ़ील होता है यार.
नव्या :- डोंट वरी भैया कुछ दिन में आदत पड़ जाएगी।
हाँ इसे बड़ा मज़ा आ रहा है.
नोक झोक तो चलती रहेगी फ़िलहाल हम पहुँच चुके हैं श्यामसुंदर अंकल के घर वो और उनकी पत्नी संध्या आँटी बाहर ही खड़े हैं हमारे स्वागत के लिए
श्यामसुंदर :- स्वागत है आप सब का आने में कोई तखलीफ़ तो नहीं हुई.
पापा :- नहीं नहीं आराम से सफ़र कट गया.
श्यामसुंदर :- आओ सब अंदर।
श्यामसुंदर अंकल के घर को देखकर ऐसा लगा जैसे किसी मंदिर में आ गए हों भगवान की तस्वीरें, लोभान की खुश्बू इन सब से सारी थकान उतर गई एक पॉज़िटिव फ़ीलिंग आ रही थी.
संध्या आँटी ने हमारे आते ही हम सबको शरबत पिलाया।
पापा :- तू मेरे घर की तारीफ़ कर रहा था लेकिन तेरा घर भी बड़ा शानदार है.
श्यामसुंदर :- शुक्रिया ! वैसे मैं अपनी पत्नी का परिचय करवाना तो भूल ही गया.
ये मेरी पत्नी संध्या और संध्या ये मेरे बचपन का दोस्त कन्हैया ये इनका पत्नी मोहिनी भाभी,ये इनका बेटा शिव,ये इनकी बेटी नव्या और ये लावण्या ये कन्हैया सारे परिवार के साथ ही रहती है पढ़ाई के लिए. और वैसे आप सब को यहाँ पूरे दो दिन रुकना पड़ेगा अपने बचपन की ढेर सारी बातें करेंगे हम.
पापा :- हम्म तेरी बचपन की हरकतें सबको बताऊंगा मैं.
नव्या :- और अंकल आप भी पापा की सब शरारतों के बारे में बताना।
श्यामसुंदर :- हाँ हाँ मुझसे ज़्यादा शरारत तो ये करता था.
माहौल इतना अच्छा है फ़िर भी संध्या आँटी किसी टेंशन में लग रही हैं मैं तो पूछ नहीं सकता था और उनके मन की बात सुनना अच्छा नहीं रहता इसलिए मैंने मम्मी से कहा कि वो अकेले में आँटी से पूछें और बाद में मम्मी ने उनसे पूछा
मम्मी :- क्या बात है संध्या जी आप कुछ परेशान लग रही हैं
संध्या :- नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं है वो आजकल मेरी तबियत ठीक नहीं रहती ना बस इसलिए आपको ऐसा लगा होगा
खाने का समय हुआ और श्यामसुंदर अंकल के घर एक बात बहुत अच्छी थी कि वहाँ नीचे ज़मीन पर बैठकर खाना खाया जाता है
श्यामसुंदर :- तुम सब को तो टेबल पर बैठकर खाने की आदत है तो तुम सब चाहो तो सोफ़े पर बैठकर खालो क्योंकि डाइंग टेबल तो है नहीं
शिव :- नहीं अंकल हमारी भारतीय संस्कृति में तो इसी तरह खाना खाने की परंपरा रही है तो आज हमें भी मौका मिला है तो हम मौका छोड़ थोड़ी ही सकते हैं
खाना खाने के बाद हम सब ने ढेर सारी बातें की और फ़िर हम सब अपने अपने रूम में चले गए
संध्या :- आपने भाईसाहब को कुछ बताया क्यों नहीं
श्यामसुंदर :- वो सिर्फ़ दो दिन के लिए मुझसे मिलने आया है वो भी अपने पूरे परिवार के साथ और मैं उसे अपनी परेशानी बताकर उसको और उसकी फैमिली को परेशान करूँ
संध्या :- आप तो जानते हैं ना कि आपने उन्हें यहाँ क्यों बुलाया है वो हमारी कुछ तो मदद कर सकते हैं ना अगर हमने उस व्यापारी को जल्द से जल्द 20 लाख रुपय नहीं दिए तो वो हमारी दुकान छीन लेगा
श्यामसुंदर :- हाँ मैंने उसे यहाँ मदद के लिए ही बुलाया था लेकिन वो मुझसे मिलकर इतना खुश है कि मेरी हिम्मत ही नहीं हो रही उसे कुछ बताने की पर तुम चिंता मत करो वो कल भी यहाँ रुकेगा कल मैं मौका देखकर उसे बता दूँगा
मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैंने सोचा कि छत पर घूम आता हूँ और लावण्या को भी नींद नहीं आ रही थी तो वो भी छत पर आ गई
लावण्या :- तुम यहाँ क्या कर रहे हो
शिव :- सेम टू यू
लावण्या :- मुझे नींद नहीं आ रही थी इसलिए आ गई
शिव :- मैं भी
लावण्या :- एक बात बताओ तुम अंकल के इन दोस्त से कभी मिले हो पहले
शिव :- मिला तो उसी दिन पहली बार था लेकिन पापा से उनकी बातें सुनी थीं
लावण्या :- अच्छा एक बात बताओ तुम्हें कुछ प्रॉब्लम है क्या
शिव :- प्रॉब्लम ?
लावण्या :- हाँ तुम इतने अकड़े अकड़े रहते हो ना
शिव :- मेरे अकड़े रहने से तुमको क्या
लावण्या :- तुम मुझसे अच्छे से बात नहीं करते ना इसलिए
शिव :- यार इतनी देर से अच्छे से ही तो बात कर रहा हूँ
लावण्या :- खैर छोड़ो वैसे आँटी बता रहीं थी कि तुम कविताएं लिखते हो तो कुछ सुनाओ ना
शिव :- ठीक है !
( धीरे धीरे चल रही थी साँस मेरी
धीरे धीरे मौत मुझ तक आ गई
धीरे धीरे याद तेरी आई मुझको
धीरे धीरे मरते मरते जी उठा मैं
धीरे धीरे तेरी तरफ बढ़ता चला मैं
धीरे धीरे तू पास मेरे आ गई
धीरे धीरे दूरियां मिटती गई और
धीरे धीरे तेरा फिर होता गया मैं
धीरे धीरे फिर हवा चलने लगी
धीरे धीरे रेत का घर ढय गया
धीरे धीरे बारिशें गिरने लगीं और
धीरे धीरे रोते रोते सो गया मैं
धीरे धीरे धुन कोई बजने लगी
धीरे धीरे गीत भी बनता गया
धीरे धीरे बाँसुरी की तान सुन
धीरे धीरे कृष्ण का होता गया मैं)
वैसे तो और बड़ी है पर बोर हो जाएंगे
लावण्या :- नहीं हो रही बोर सुनाओ ना
शिव :- तुम नहीं ये लोग
लावण्या :- कौन लोग ?
शिव :- तुम नहीं समझोगी
दो दिन बीत गए लेकिन श्यामसुंदर अंकल पापा को कुछ नहीं बता सके कि आख़िर उनकी परेशानी क्या है और हमारे जाने का दिन आ गया
श्यामसुंदर :- तुम लोग कुछ दिन और रुक जाते तो अच्छा होता
पापा :- रुक तो जाते लेकिन ये बच्चियों के कॉलेज हैं ना तो जाना पड़ेगा लेकिन जैसे हम तेरे घर रुके वैसे आप दोनों को भी हमारे घर आकर रुकना पड़ेगा ठीक है
श्यामसुंदर :- हाँ ज़रूर
पापा :- तो अब हम लोग चलते हैं
हम लोग वहाँ से निकल जाते हैं और फ़िर श्यामसुंदर अंकल के घर वही व्यापारी आता है जिसे उनको पैसे देने होते हैं
श्यामसुंदर :- देखिए भाईसाब हम जल्द से जल्द आपके पैसे वापस कर देंगे आप तो जानते हैं कि कोरोना की वजह से दुकान में जो घाटा हुआ उसकी वजह से कई महीनों का जो सामान का पैसा सबको देना बाकी था उसके लिए हमें आपसे पैसे लेने पड़े थे पर हम दे देंगे वापस
व्यापारी :- अरे क्यों मज़ाक करते हो श्यामसुंदर जी मैं तो आपकी दुकान के पेपर वापस करने आया हूँ अच्छा हुआ आपने मेरे पैसे जल्दी लौटा दिए वरना आपकी दुकान चली जाती
श्यामसुंदर :- जी धन्यवाद
व्यापारी के जाने के बाद
संध्या :- हमनें तो कोई पैसे वापस नहीं करे तो फ़िर किए किसने
तभी श्यामसुंदर अंकल की आँखों में आँसू आने लगते हैं और वो अपना फ़ोन निकाल कर पापा को वॉइस मैसेज भेजते हैं
पापा :- अरे श्यामसुंदर का वॉइस मैसेज ज़रा सुनु तो कहीं क्या बोल रहा है
श्यामसुंदर ( वॉइस मैसेज में ) :- ( तेरे माता पिता ने तेरा नाम बिल्कुल सही रखा है कन्हैया बिल्कुल तेरे स्वभाव जैसा मुझे तो लगा की मेरे घर मेरा दोस्त आया है लेकिन अब पता चला कि सुदामा के घर खुद कृष्ण आए थे )
ये सुनकर पापा की आँख में आँसू आने लगते हैं
अब आप सोच रहे होंगे कि पापा को अंकल की प्रॉब्लम पता कैसे चली तो चलिए ज़रा आपको फ्लेशबैक में ले चलता हूँ
पापा :- अरे मैं तो अपने फ़ोन का चार्जर ही भूल गया
मम्मी :- आपके फ़ोन में नव्या के फ़ोन का चार्जर लग जाएगा
पापा :- हाँ मैं उससे लेकर आता हूँ
नव्या के कमरे में जाते वक़्त पापा ने श्यामसुंदर अंकल की बातें सुन लीं और मेरे कमरे में आए
पापा :- शिव ! मुझे तुझसे कुछ बात करनी है
शिव :- बात करनी है इतनी रात को सब ठीक तो है ना
पापा :- शिव 2 साल पहले जब तूने अपनी पहली कमाई अपनी मम्मी के हाथ में दी थी तब तूने मुझसे रिटायरमेंट लेने को कहा था क्योंकि तू नहीं चाहता था कि तेरे रहते मैं काम करूँ और उस वक़्त तूने कहा था कि तू मुझे किसी भी चीज़ के लिए मना नहीं करेगा
शिव :- हाँ लेकिन ये सब बातें क्यों बता रहे हो और टेंशन में भी लग रहे हो
पापा :- मुझे....मुझे 20 लाख रुपए चाहिए
शिव :- हाहाहा.... बस इतनी सी बात बोलने के लिए आप कहाँ 2 साल पीछे चले गए आपका कहना ही बहुत है मेरे लिए पापा पर क्या है इतना बड़ा ट्रांज़ैक्शन ऑनलाइन होगा नहीं तो कल सुबह मैं चैक बनाकर पैसे आपके एकाउंट में ट्रांसफर करवा दूँगा
पापा :- नहीं मेरे एकाउंट में नहीं वो चैक किसी और को देना है
शिव :- किसे ?
पापा :- मैं बताता हूँ तुझे
तो बस ऐसे मेरे पापा ने अपने दोस्त की मदद की
पापा :- शिव एक बात बता परसों मैंने तुझसे इतनी बड़ी रक़म मांग ली और तूने कारण तक नहीं पूछा
शिव :- भगवान श्री राम ने वनवास की बात सुनकर राजा दशरथ जी से एक भी सवाल नहीं किया और बिना किसी नाराज़गी या गुस्से के वनवास चले गए अब मैं तो सात जन्म में भी मेरे राम जैसा नहीं बन सकता लेकिन इतना तो कर ही सकता हूँ ना और मुझे पता था कि आप किसी अच्छे काम के लिए ही वो पैसे ले रहे हो
और पापा सब आप ही का है फ़िर मैं कौन होता हूँ पूछने वाला
लावण्या :- मैंने कहा था ना के पीछे बैठने से मेरा सर घूमने लगता है लेकिन तुमने माना ही नहीं
शिव :- यार पापा पीछे कम्फ़र्टेबल नहीं थे इसलिए
मम्मी :- अच्छा शिव किसी दुकान पर रोक ना चाय पीते हैं उससे लावण्या का सर भी ठीक हो जाएगा
शिव :- आप लोग जाकर चाय बोलिए मैं आता हूँ अभी
अंत :- चाहा कर भी कोई भगवान कृष्ण जैसा नहीं बन सकता श्री कृष्ण ने राजा होते हुए भी जो अपने मित्र सुदामा जी के लिए किया वो शायद आज कोई ना करे मैं यहाँ मेरे पापा और श्यामसुंदर अंकल को श्री कृष्ण या सुदामा जी के जैसा नहीं बता रहा ये कहानी सिर्फ़ ये बताने के लिए थी कि दोस्त अगर मदद ना भी मांगे लेकिन आप उसकी मदद कर सकतें हो तो अवश्य कीजिए।
तो चलिए अब मैं मिलता हूँ आपसे अगले एपिसोड में तब तक के लिए जय श्री कृष्ण।