व्रत
व्रत
पूजा घर से आ रही शुद्ध देशी घी की ख़ुशबू ,माँ !को श्रद्धा से ‘ओठगन’ प्रसाद जो गुड और आटा से शुद्ध देशी घी में बनाया जाता है,दिमाग़ की ओखली तक पहुँच कर भूख की ज्वाला भड़का रही थी।मैं ललचाई आँखों से देखती और इंतज़ार करती कि कब माँ पूजा समाप्त कर प्रसाद देंगी ?
माँ से मेरी शिकायत रहती थी -माँ !भाइयों के लिए बड़ा ‘ओठगन ‘और हम बहनों को छोटा क्यों? पूजा के पश्चात अर्द्धचंद्राकार सोने की बनी ज्युतिया लाल धागे की माला भाइयों को पहनाया जाता।हम बहनें चुपचाप देखती और ख़ुश होते ,मन में एक पल के लिए भी भेद -भाव की भावना उत्पन्न नहीं होती।
उस समय हमें आज की जागृत बेटियों की तरह विरोध करने की हिम्मत नहीं थी ।या कहे ज्ञान नहीं था।या ध्यान नहीं गया कि बेटा -बेटी में फ़र्क़ क्यों?वर्षों की परंपराओं को तोड़ने से कुछ बुरा ना हो जाए का डर भी एक बहुत बड़ा कारण था।
आज ,अस्सी साल से भी उपर हो चुकी माँ को “ज्युतिया व्रत ,”उसी त्याग और तपस्या से करते देख बेहद चिंता होती है|मन में विचार उठता है कि काश !माँ के लिए भी कोई व्रत पूजन होता तो मैं उनके दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखती।